Esha Mandir Jaha per sthapit Rahashyo se bhara Shaligram 200 Warsho se lagatar Aakar me badh raha hai.

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ऐसा मंदिर जहां पर स्थापित रहस्यों से भरा शालिग्राम २०० वर्षों से लगातार आकार में बढ़ रहा है।

जानिए कहाँ है ऐसा मंदिर?

इस मंदिर में है अदभुत ‘शालिग्राम’, पिछले 200 सालों से बढ़ रहा है आकार

भारत देश को मंदिर प्रधान देश माना गया है। देश-विदेश से लोग भारत देश में मुख्य रूप से मंदिर दर्शन हेतू आते है। यहां मंदिरों को विशेष सम्मान प्राप्त है। मंदिरों में देवता का निवास होने से इसे देवआलय भी कहा जाता है। ऐसे भगवान के घर में लोगों को अक्सर रोचक और चमत्कार से भरे दृश्य देखने को मिल ही जाता है। इन्ही सब जिज्ञासा से भरे एक ऐसे ही आलौकिक मंदिर के संबंध में आपको अवगत कराने जा रहें है। जहां पर तकरीबन २०० वर्षों से स्थापित शालिग्राम अपने वास्तविक मटर के आकार से बढ़कर नारियल के दुगना आकार का हो गया है।

कहाँ है ऐसा मंदिर-

यह मंदिर बिहार के पश्चिम चंपारण के बगहा पुलिस जिला में है। ऐसा अद्भुत पिंडी(शालीग्राम) बगहा पुलिस जिला के पकीबावली मंदिर के गर्भगृह में रखा हुआ है।

क्या होता है शालीग्राम-

शालीग्राम भगवान विष्णु का प्रतिक होता है। माना गया है कि अगर शालीग्राम अपने आकार का पूर्ण हो तो उसमें भगवान विष्णु के शुदर्शन चक्र की आकृति अंकित होती है। खासतौर से वैष्णव इनकी पूजन-अर्चन करते है। यह एक तरह का शंख की भांती चमकिला एवं आकार में बहुत छोटा और रंग में भूरे, सफेद या फिर नीला पत्थर होता है। आमतौर से यह पिंड नेपाल के काली गंडकी नदी के तट पर आसानी से पाया जाता है।

कैसे पहुंचा यह शालीग्राम इस मंदिर में-

इस मंदिर में है अदभुत ‘शालिग्राम’, पिछले 200 सालों से बढ़ रहा है आकार

आज से तकरीबन २०० वर्ष पूर्व अंग्रेजी शासन काल में किसी जागीरदार को गिरफ्तार करने हेतू अंग्रेज सरकार के कहने पर नेपाल नरेश जंग बहादुर बगहा पुलिस जिला को पहुंचे थे। उनके पहुंचने की सूचना वहां के निवासी एक हलवाई को हो गई थी। जिसपर उस हलवाई ने नेपाल नरेश के आहोभगत के लिए कई थाल से भरी मिष्ठान को लेकर पहुंचा था। इस मेहमानबाजी से खुश होकर उस हलवाई को नेपाल के अपने महल में आने का नेपाल नरेश ने न्यौता दे दिया। जिस पर जब उस हलवाई ने नेपाल नरेश के न्योता पर उनके महल को पहुंचा तो उसका सम्मान किसी राजा से कम न होते देख हलवाई का खुशी का ठिकाना न रहा। कुछ दिन बिताने के बाद अपने देश को जाने के लिए हलवाई ने नेपाल नरेश से आज्ञा मांगी। बिदाई के दौरान वहां के राजपुरोहित ने भेट स्वरूप मटर से भी छोटा एक पिंड(शालीग्राम) उस हलवाई को दिया। जिसको लेकर अपने देश लौटे हलवाई ने अपने निवास स्थल के समीप अपने हैसियत के समझ एक भव्य मंदिर का निर्माण कर उस शालिग्राम को पंडितों के माध्यम से विधि-विधान पूजा करवा कर उस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कर दिया। तब से आज तक उस हलवाई के वंशज उस मंदिर का देख-रेख कर रहें है। इस दौरान उस पिंड का लगातार आकार में बढ़ोतरी देख बिड़ला समूह ने उस मंदिर का जिर्णोंधार करने की अपनी इच्छा जाहिर की। परन्तू हलवाई परिवार ने साफ इन्कार कर उनकी इच्छा को नामंजूर कर दिया। कहा जाता है कि आज के पिंड का आकार २०० वर्ष पहले मटर से भी छोटा पिंड के आकार से नारियल के आकार का दोगुना हो चूका है। और आज भी उसका आकार लगातार बढ़ रहा है।

वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा सके इस रहस्य को-

पुरातत्व विभाग के आला अधिकारी अपने टिम सहित कई बार इस स्थान पर अपना कैम्प लगा कर, बढ़ रहे अपने आकार के पिंड का शोध किया। पर अभी तक वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सके। कहा जाता है कि जहां आस्था है वहां विज्ञान अपने घुटने टेक देता है। ऐसी स्थिती पर विज्ञान के पास कोई ठोस जवाब नहीं होता है।

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