Gorakhnath Mandir me jalti hai Akhand Jyoti

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गोरखनाथ मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

त्रेता युग में जलाई गई अखंड ज्योति आज भी वैसे ही जल रही है।
जाने गोरखनाथ मंदिर के बारे में

Gorakhnath Temple

युपी के सीएम बने योगी आदित्यनाथ के गोरखनाथ मंदिर के महंत होने से यह मंदिर आज-कल आमजनमानस में तेजी से जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। हर लोग अपने सीएम के साथ ही साथ इस मंदिर के सम्बन्ध में भी अधिक से अधिक जानने को आतुर है।
बता दें कि मुस्लिम शासन काल में हिंदुओंं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केंद्रो की तरह इस पीठ को भी कई बार बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसकी प्रसिद्धि की वजह से शत्रुओं का ध्यान इसकी तरफ हमेशा से रहा है। चौदहवीं सदी मेंं भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिजली के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किए गए थे। जिसके बाद मठ का पुनर्निर्माण किया गया। सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुगल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया। वहीं इसे पुन: निर्माण कराया गया। Akhand-Jyoti

दूसरी तरफ औरंगजेब के असफल प्रयास के बाद भी शिव गोरक्ष द्वारा त्रेता युग में जलाई गई अखंड ज्योति आज तक तथा अनेक झंझावातों के बावजूद अखंड रूप से जलती आ रही है। यह ज्योति आध्यात्मिक ज्ञान, अखण्डता और एकात्मता का प्रतीक है। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।।

गोरखनाथ नाथ(गोरखनाथ मठ )नाथ पंरपरा में नाथ मठ समूह का एक मंदिर है।

Gorakhnath ki pratima

गोरखनाथ या गोरक्षनाथ जी महाराज ११वीं सं १२वीं शताब्दी के नाथ योगी थे। गुरू गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और नाथ सम्प्रदाय के कैनन के हिस्से के रूप में ग्रंथों के लेखक भी थे एवं अनेकों ग्रन्थों की रचना भी की । गोरखनाथ जी का मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा। गुरू गोरखनाथ जी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया। नेपाल में एक जिला है गोरखा, उस जिले का नाम गोरखा भी इन्ही के नाम से पड़ा। गोरखा जिला में एक गुफा है जहाँ गोरखनाथ का पग चिन्ह आज भी मौजूद है और उनकी एक मुर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पुर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे ‘रोट महोत्सव’ कहते हैं और यहाँ मेला भी लगता है।
नाथ परंपरा गुरू मत्स्येंद्रनाथ द्वारा स्थापित की गयी थी। यह मठ एक बड़े परिसर के भीतर शहर गोरखपुर के बीचों बीच, उत्तर प्रदेश मेंं स्थित है। ‘गोरखनाथ’ मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां वह तपस्या किया करते थे और उनको श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए यह मंदिर ५२ एकड़ जमीन पर बनाया गया है। गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर हैंं यह मंदिर इस क्षेत्र मेंं सबसे सुंदर और विशिष्ट मंदिरोंं में से एक है। इस मंदिर में हर रोज असंख्य पर्यटकों और यात्री दर्शन के लिए आते हैं। वहीं मंगलवार को यहां दर्शनार्थियों की संख्या ज्यादा होती है। माघ में प्रथम पर्व मकर संक्रान्ति के मौके पर यहां विशाल मेला लगता है जो खिचड़ी मेला के नाम से विश्व-प्रसिद्ध हैं
गोरखपुर मेंं गोरखनाथ मंदिर गुरू गोरखनाथ के नाम पर रखा गया जिन्होंंने अपनी तपस्या के सबक मत्स्येंद्रनाथ से सीखे थे। अपने शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर, गुरू मत्स्येंद्रनाथ ने हठ योग स्कूलों की स्थापना की जो योग अभ्यास के लिये बहुत अच्छे स्कूलों मेंं से माना जाता था। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर नाथ योगियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। मंदिर योग साधना, तपस्या और गुरू गोरखनाथ के ज्ञान का प्रतिनिधि है। यह माना जाता है कि गोरखनाथ जी की गद्दी और उनकी समाधि गोरखपुर मेंं इस प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय मंदिर के अंदर स्थित है। मंदिर की पूर्वी उत्तर प्रदेश, तराई क्षेत्र और नेपाल में महत्वपूर्ण मान्यता है।
गुरू गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं। जो गुरू गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात परमेश्वर नाथ और गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालोंं में प्रमुख बुद्ध नाथ जी(१७०८-१७२३ई) मंदिर के महंत बने। १५ फरवरी १९९४ गोरक्षपीठधीश्वर महंत अवैद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक योगी आदित्यनाथ का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ।

ऐसा कहा जाता है कि इसका रूप और आकार, जिसमें इस मंदिर को आज देखा जाता है उसे १९ वीं सदी की दूसरी छमाही में स्वर्गीय महंत दिग्विज्य नाथ और भूतपूर्व महंत अवेद्यनाथ जी द्वारा अवधारणा किया गया था।

मंदिर के भीतर देवप्रतिमाएं-
श्री गोरखनाथ मंदिर(श्री गोरक्षनाथ मंदिर), गोरखपुर मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी गुरू गोरखनाथ जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है। यह सिद्धिमयी दिव्य योगमूर्ति है। श्री गुरू गोरखनाथ जी की चरण पादुकाएं भी यहाँ प्रतिष्ठित हैं, जिनकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा भाग में भगवान शिव की भव्य मांगलिक मूर्ति, विन्धविनाशक श्री गणेशजी, मंदिर के पश्चिमोत्तर कोने मेंं काली माता, उत्तर दिशा मेंं कालभैरव और उत्तर की ओर पाश्व्र में शीतला माता का मंदिर है। इस मंदिर के समीप ही भैरव जी, इसी से सटा हुआ भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग मंदिर है। उत्तरवर्ती भाग में राधा कृष्ण मंदिर, हट्टी माता मंदिर, संतोषी माता मंदिर, श्री राम दरबार, श्री नवग्रह देवता, श्री शनि देवता, भगवती बालदेवी, भगवान विष्णु का मंदिर तथा योगेश्वर गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखंड धूना स्थित है। विशाल हनुमान जी मंदिर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्राह्य्नाथ, गंभीरनाथ और मंहत दिग्विजयनाथ जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो भक्तों के ह्य्दय में आस्था एवं श्रद्धा का भाव संचारित करती हैं। पवित्र भीम सरोवर, जल-यंत्र, कथा-मण्डपम यज्ञशाला, संत निवास, अतिथिशाला, गोशाला आदि स्थित हैं।

शैक्षिक व सामाजिक महत्व-
मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान मेंं ‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्’ की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास, महाराणा प्रताप आश्रम, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराण प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद मेंं स्थापित हैै।

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