हमारें पुराणों में रहस्यमयी जीवों का उल्लेख दिया है। जानते है कुछ ऐसे जीवो के संबंध में!
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग के रामायण व महाभारत जैसे महा पुराणों में ऐसे ही कुछ पशु-पक्षियों के संबंध में उल्लेख है जो आज के युग में इनका वजूद का नामो-निशांं नहीं है। जिनके बारे में यह बताया जाता था कि यह सब प्राणी अपने-अपने समय में मनुष्यों से बात-चित कर सकते थे एवं उनके पास आलौकिक सक्तियां भी थी। जो की आज के युग में इन सभी बातों पर विश्वास कर पाना नामूनकिन है। आज इनका कोई प्रमाण नहीं है। पर जहां आस्था होती है वहां शंका का कोई स्थान नहीं होता है। हमारें ग्रर्थोंं से ऐसे ही कुछ जीवों के बारे में हम आपको रूबरू करा रहे हैं।
गरूड़-
भगवान नारायण का वाहन गिद्धों के राजा गरूड़ एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान होने के साथ-साथ चमत्कारियों ताकतों के भी राजा था। यह शक्तिशाली और रहस्यमयी पक्षी थे। माता जाता है कि प्रजापति कश्यप की पत्नी को दो पुत्र हुए थे। जिसमें एक गरूड़ थे जो भगवान नारायण के शरण में चले गये थे, एवं दूसरा अरूण जो सूर्य के सारथी पर कार्य कर रहे हैंं।
वानर मानव-
त्रेता युग के राम जन्म के पूर्व उनके परम भक्त हनुमान का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म आज से तकरीबन ७१२९ वर्ष पूर्व हुआ था। वहीं शोधकर्ता के अनुसार आज से ९ लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारत के जमीन पर विचरण किया करते थे। इसके साक्ष्य मिले है।
उच्चै:श्रवा घोड़ा-
उच्चै:श्रवा का मतलब, जो यश में ऊचां हो, जिसके कान ऊंचे हों या जो अश्वों का राजा हों। हमारे जहन में घोड़े की छवी साफ-साफ है कि ऐसे प्राणी जो जमीन पर विचरण करते है। परन्तू ऐसे भी घोड़े पूर्व में हुआ करते थे, जो सफेद रंग का उच्चै:श्रवा घोड़ा जो दौड़ मे सबसे तेज औैर पक्षियों के समान आसमान में उड़ने वाला माना जाता था।
कामधेनु-
पुराणों में अमृत उत्पति के बारे में बताया गया है उसी क्रम में एक गाय भी प्रकट हुई थी। जिसको कामधेनु के नाम से संबोधन किया गया। यह गाय जिसके पास हो उसके पास कभी ऐश्वर्य की कमी नही होती थी। यह मनुष्य के हर एक इच्छा को पूर्ण करने में संक्षम मानी जाती थी। इसका दूग्ध भी अमृत के समान माना जाता था।
सम्पाती और जटायु-
रामायण काल में ऐसे ही दो नामों का उल्लेख है। यह दोनों पक्षी में सम्पाती जटायु का बड़ा भाई था। ये दोनों विंध्याचल के पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषियों की निश्वार्थ सेवा किया करते थे। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था।
रीछ मानव-
रामायणकाल में रीछनुमा मानव भी होते थे। जांबवंत इसका उदाहरण हैं। जांबवंत भी देवकुल से थे। भालू या रीछ उरसीडे परिवार का एक स्तनधारी जानवर है। इसकी अब सिर्फ ८ जातियां ही शेष बची हैं। संस्कृत में भालू को ‘ऋक्ष’ कहते हैं जिससे ‘रीछ’ शब्द उत्पन्न हुआ है। मगर ये रीछ इंसानों से बातें नहीं कर सकते हैं।
ऐरावत हाथी-
ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। इरा का अर्थ जल है। इसलिए ‘इरावत’(समुद्र) से पैदा होने वाले हाथी को ऐरावत नाम दिया गया है। हालांकि इरावती का पुत्र होने के कारण ही उनको ऐरावत कहा गया है। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली १४ मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से मिले रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था।
शेषनाग-
भारत में पाई जाने वाली नाग प्रजातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। पुराणों के अनुसार कश्मीर में कश्यप ऋषि का राज था। आज भी कश्मीर में अनंतनाग और शेषनाग आदि नाम से स्थान हैैं। शेषनाग ने भगवान विष्णु की शैया बनना स्वीकार किया था। ये कई फनों वाला नाग माना जाता है। जिस पर पृथ्वी टिकी है ऐसी भी मान्यता है।
इच्छाधारी नाग-नागीन-
इसका उल्लेख महाभारत के नायक अर्जुन के जीवन से मिलता है वे अपने तपस्या के दौरान नागलोक की एक विधवा नागकन्या उलूपी से विवाह किया था। नागकन्या उलूपी के पहले पति नाग को गरूड़ ने खा लिया था। इससे छुब्द हुई उलूपी से अर्जुन ने विवाह किया। इन दोनों का एक पुत्र अरावन नाम का नाग था। जिसका आज भी दक्षिण भारत में मंदिर है। इस मंदिर में किन्नरों की बड़ी आस्था है। अपने ईष्ट अरावन नाग को अपना पति मानती है। वहीं अर्जुन के बड़े भाई भीम का पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या अहिलवती से हुआ था।