कैसी हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति?
भगवान शिव के गले की शोभा है रूद्राक्ष, इसमें छिपा है भगवान शिव का नाम, शिव ही है जनक है इसके, शिव के बिना अधूरा है रूद्राक्ष। यह सारी परिभाषा है रूद्राक्ष की। इस आलेख में जानेगें की रूद्राक्ष की कैसे उत्पत्ति हुई थी। उसके पहले यह जान ले कि क्या है रूद्राक्ष?
रूद्राक्ष एक प्रकार का जंगली फल है, जो बेर के आकार का दिखाई देता है तथा हिमालय में उत्पन्न होता है। रूद्राक्ष नेपाल में बहुतायत में पाया जाता है। इसका फल जामुन के समान नीला तथा बेर के स्वाद-सा होता है। यह अलग-अलग आकार और अलग-अलग रंगों में मिलता है। जब रूद्राक्ष का फल सूख जाता है तो उसके ऊपर का छिल्का उतार लेते हैं। इसके अंदर से वास्तविक फल प्राप्त होता है। यही असल रूप में रूद्राक्ष है। इस फल के ऊपर १ से १४ तक धारियां बनी रहती हैं, इन्हें ही मुख कहा जाता हैं। इसमें कई श्रेणी होती है जानते है कि रूद्राक्ष की श्रेणी?-
रूद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों मे बांटा गया है-
१.उत्तम श्रेणी- जो रूद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
२.मध्यम श्रेणी- जिस रूद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
३.निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रूद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।
जिस रूद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पुरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रूद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए। वहीं जिस रूद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है। इसी में रूद्राक्ष को रंगों के आधार पर चार श्रेणियों में बाटा गया है जो निम्नवत् है। सफेद रंग का रूद्राक्ष ब्राह्मण वर्ग का, लाल रंग का क्षत्रिय, मिश्रित वर्ण का वैश्य तथा श्याम रंग का शूद्र कहलाता है।
अब यह जानले कि कैसे उत्पत्ति हुई है रूद्राक्ष की-
रूद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दुखी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। इन्हीं आंसू की बूदों से रूद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ।