कार्तिक मास में हर मनोकामना की पूर्ती हेतू पालन करें ये ७ नियम!
कार्तिक मास के संबंध में हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से उल्लेख है। इस मास में हिन्दू धर्म के लोग महिने भर धर्म शास्त्रों के अनुसार व्रत व तप का पालन करते हैं। इस कर्म से उन्हें अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास के बारे में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को इसके सर्वगुण संपन्न माहात्म्य के संदर्भ में बिस्तार से बताया था। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के ७ प्रधान नियमों के बारे में बताया एवं समझाया। और यह भी बताया कि ऐसा करने मात्र से भक्त की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
१.दीपदान- कार्तिक मास में हमें किसी नदी या तालाब में रोज दीपदान करना चाहिए। ऐसा करना पूण्यकारी माना गया हैं एवं इससे श्री हरि विष्णु जी सीघ्र प्रसन्न होते हैं।
२. ब्रह्मचर्य का पूर्णतया: पालन करना अनिवार्य- इस दौरान पति-पत्नी को इसका पूर्णरूप से पालन करना चाहिए। ऐसा न होने से इसका अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
३.भूमि पर सोना लाभकारी- कार्तिक मास का तीसरा नियम भूमि पर सोना हैं। इस कर्म से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाता हैं।
४.तेल का उपयोग वर्जित- इस महिने में हमें तेल को अपने शरीर पर लगाने से बचना चाहिए। इसे पूर्णतया: वर्जित माना गया हैं। किन्तु अगर इस मास में नरक चतुर्दशी(कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन तेल को अपने शरीर पर लगाते है तो इसका दुष्प्रभाव नहीं होता हैं।
५.दालों का सेवन वर्जित- इस महिने में हमें उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर व राई इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।
६.तुलसी पौधे की नियमित पूजा- मान्यता है कि इस मास में श्री हरि विष्णु जी तुलसी के पौधे में निवास करते हैं। इसलिए यह मास तुलसी पूजन के लिए महत्वपूण मास माना गया हैें। इस मास में हमें रोज तुलसी जी का पूजन करना और उनके पत्तियों का सेवन करना लाभकारी माना गया हैं। वैसे तो तुलसी के पौधे का पूजन और पत्तियों का सेवन हर मास में करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक महिने में इसका महत्व बड़ जाता हैं।
७.संयम रखना चाहिऐ- कार्तिक महिना का पालन करने वाले को अपने ऊपर पूर्ण रूप से संयम रखना होता हैं। अर्थात उसे किसी से वाद-विवाद में नहीं उलझना चाहिए, पति को पत्नि से और पत्नि को पति से किसी भी बात पर नहीं लड़ना-झगड़ना चाहिए। किसी का निंदा नहीं करना चाहिए इत्यादि बातों का विशेष ध्यान रखना होता हैं। ऐसा न करने से ऊनका कार्तिक मास का जप-तप एवं व्रत का पालन विफल हो जाता हैं।