काशी की गोद में छिपा विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
सम्राट औरंगजेब ने काशी के प्राचीन विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवायी जो आज भी वहीं पर स्थित है।
विश्वनाथ की नगरी(काशी) धर्म एवं विद्या की पवित्र और प्राचीनतम् नगरी में विख्यात है। यहाँ वैदिक साहित्य की संहिताओं ब्राह्मण ग्रन्थों एवं उपनिष्दों में काशी का उल्लेख है। साथ ही पाणिनि, पंतञ्जलि आदि ग्रन्थों में भी काशी की चर्चा है। पुराणों में स्पष्ट है कि भोले बाबा के त्रिशूल पर विराजित काशी क्षेत्र में पग-पग पर तीर्थ हैं। स्कन्दपुराण काशी-खण्ड के केवल दशवें अध्याय में ६४ शिवलिङ्गो का उल्लेख है। हेन सांग ने उल्लेख किया है- कि उसके समय में वाराणसी में लगभग १०० मंदिर थे। उनमें से एक भी सौ फीट से कम ऊँचा नहीं था। जिसमें से मुख्य एवं काशी की पहचान के रूप में विश्व विख्यात जानने वाली १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग यहाँ के विश्वनाथ की प्राचीन मंदिर में कई हजारों वर्षों से स्थापित है।
इस मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। त्रिस्थली सेतु के अनुसार पापी मनुष्य भी विश्वेश्वर के लिंग का स्पर्श कर पूजा कर सकता था। ऐसा माना जाता है कि सिर्फ एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में भोले बाबा के प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।
कहते हैं कि भगवान शिव के मन में एक बार एक से दो हो जाने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने खुद को दो रूपों में विभक्त कर लिया। एक शिव कहलाए और दूसरे शक्ति। लेकिन इस रूप में अपने माता-पिता को ना पाकर वह बेहद दुखी थे। उस समय आकाशवाणी ने उन्हें तपस्या करने को प्रेरित किया। तपस्या हेतू भगवान शिव ने अपने हाथों से पांच कोस लंबे भूभाग पर काशी का निर्माण किया। और यहां विश्वेश्वर के रूप में विराजमान हुए। इसके इतिहास में झाकें तो विश्वनाथ मंदिर पर मुगलों के कई आतंक के बाद भी इस मंदिर की शोभा में कोई भी कमी नहीं हो पाई। अलाउद्दीन खिजली ने भी लगभग एक हजार मंदिरों को नष्ट कर धराशायी कर दिया। इस तोड़-फोड़ में विश्वनाथ का मंदिर भी था, किन्तु सन् १५८५ ई. में सम्राट अकबर के राजस्व मन्त्री की सहायता से श्री नारायण ने विश्वनाथ जी के मंदिर को पुन: बनवाया वहीं सम्राट औरंगजेब ने काशी के प्राचीन मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवायी जो आज भी वहीं पर स्थित है।
काशी के देवता विश्वनाथ के जिस मंदिर को औैरंगजेब ने नष्ट किया था समीप ही १८वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में महारानी अहल्या बाई होलकर ने वर्तमान विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसके बाद में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा १८५३ में १००० कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा इस मंदिर के कई हिस्सों को स्वर्णित रूप दिया गया।