क्या देवों के देव महादेव को भी अपनी जान बचानें की चिंता हुई थी।
क्या उन्होंने बिहार के जंगलों में छिप कर अपनी जान एक असुर से बचाई थी?
क्या है सच्चाई? आइये जानते है-
हम सभी जानते है किे त्रिदेवों में भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। क्यों कि उनके भोले स्वभाव के कारण वह अपने भक्त को बिना सोचे कोई भी वरदान दे देते है इसलिए भक्त उन्हें भोलेनाथ के नाम से भी पुकारते है। इन्हें प्रसन्न करना बेहद आसान है। चाहे वो असुर हो या सामान्य व्यक्ति हो, सच्चे मन से कोई भी उनका ध्यान करता है तो सिघ्र ही प्रभु प्रसन्न हो कर भक्त द्वारा मांगा गया कोई भी वरदान क्षण भर में दे देतें हैं। फिर उसका अंचाम चाहे कुछ भी हो। ऐसे ही एक प्राचीन कथा प्रभु शिव से जुड़ी हुई है।
जिसमें भस्मासुर नामक एक राक्षस ने घोर तपस्या कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया था। जिसके तपस्या से अधिन हुऐ शिव ने भस्मासुर द्वारा मांगे गये वरदान में किसी के सर पर अपना हाथ रखने से वह व्यक्ति छड़ भर में भस्म हो जायेगा। वरदान दें दिया। शिव के साथ आऐ माता पार्वती को देख कर भस्मासुर उनके रूप पर आर्कषित हो गया। और माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने की इच्छा से और अपने और पार्वती के बिच में आ रहें है शिव को हटाने हेतू उन्हीं से प्राप्त किया गया वरदान की मदद से भगवान शिव को भस्म करने को दौड़ा। अपने ओर भस्मासुर को आते देख भगवान शिव ने आज के नाम से प्रचलित पटना राज्य के रोहतास नामक स्थान पर अवस्थित विंध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे ऐतिहासिक गुफा(गुप्ताधाम गुफा) में शरण ली थी। अपनी रच्छा हेतू शिव ने विष्णु से मदद मांगी।
मदद के फलस्वरूप विष्णु ने एक अत्यन्त मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर के सनमुख आ खड़ी हो गई। मोहिनी को देख भस्मासुर सब कुछ भूल कर उस स्त्री के पिछे-पिछे चल पड़ा। उसको अपना बनाने के लिए मोहिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। मोहिनी एक नरतकी होने की और एक कुशल नृत्य करने वाले के साथ विवाह करने की बात कही। इस पर भस्मासुर उसके तरह नृत्य करने की इच्छा जाहिर करते हुए मोहिनी के साथ-साथ नृत्य करने लगा।
जब मोहिनी ने अपना हाथ अपने सर पर रखा तो यह देख भस्मासुर ने भी भगवान शिव द्वारा प्राप्त किया गया वरदान को भूल कर अपने सर पर अपना हाथ रख दिया। जैसे ही उसने अपना हाथ सर पर रखा वैसे ही वह भस्म हो गया। जिसके बाद गुफा में छिपे भगवान भोलेनाथ बाहर आ गये।
बता दें कि इस गुप्तेश्वरनाथ यानी गुप्ताधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कोई भी प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। पहाड़ी पर स्थित यह गुफा का द्वार १८ फीट चौड़ा और १२ फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। गुफा में लगभग ३६३ फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें साल भर पानी भरा रहता है। भक्तगण इसे पाताल गंगा कहते हैं। गुफा के भीतर प्राचीप काल के दुर्लभ शैलचित्र मौजूद है।
इसके कुछ आगे बड़ने पर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। इस शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता रहता है। भक्तगण इसे अपने प्रभु पर हो रहें जलाभिषेक का प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। इस गुफा में इतना अंधेरा होता है कि अगर आप बिना कृत्रिम रौशनी के मदद के अन्दर प्रवेश करना चाहें तो यह कर पाना असम्भव है।
रोहतास के इतिहास के पन्नों में दर्ज दस्तावेजों में उल्लेखित है कि गुफा के नाचघर और घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे भक्तगण ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं। इसे पढ़ने से संभव हो कि इस गुफा के संबंध में कई तरह के रहस्यों का खुलासा सम्भव हो सके। इस गुफा के बारे में आज तक पुरातत्व विभाग ने किसी तरह की अपनी टिपण्णी नही दे सके है कि यह गुफा मानव निर्मित है कि या प्राकृतिक निर्मित है। यहां पर हर सावन के पूरे महीने, शिवरात्री और सरस्वती पूजा के दौरान एक मेला आयोजन रहता है।
इस दौरान बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों की संख्या में शिवभक्त यहां आकार शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। बक्सर के नजदिक होने के कारण से रोज भक्तगण बक्सर से गंगाजल लेकर अपने प्रभु भगवान शिव को जल चढ़ाने के हेतू उनका तांता लगा रहता है।