क्या दुनियाँ में कहीं राक्षसी की भी होती है पूजा?, कहाँ पूजी जाती है राक्षसी?
महाभारत से सम्बन्धित एक कथा में इस राक्षसी का एक प्रसंग मिलता है जिससे इसका राक्षसी कुल होने के बावजूद भी देवी रूप में पूज्यनीय है। पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम की पत्नी हिडिम्बा को मनाली के कुल्लू राजवंश की दादी के रूप में जाना जाता है। यहां में लोेग हिडिम्बा को देवी मानते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं। पगौड़ा शैली में एक गुफा में बने यह मंदिर देवी हिडम्बा को समर्पित है इसी मंदिर के अंदर माता हिडिम्बा की चरण पादुका है। मंदिर के आस-पास का दृश्य इतना मनमोहक है कि मनाली में आने वाले पर्यटक यहां जरूर आते हैं। इसी कारण से इस मंदिर की गिनती हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में की जाती है। यह मंदिर हिमालय की तलहटी पर स्थित है जिसके आसपास हरियाली हैै। इस मंदिर का निर्माण १५५३ ई. में एक पत्थर में किया गया था। पत्थर को इस प्रकार से काटा गया है कि उसका आकार गुफानुमा हो गया। इस पत्थर के अंदर जाकर श्रद्धालु दर्शन कर सकते है और विशेष पूजा का आयोजन कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजा विहंगमणि पाल ने इस मंदिर को बनवाने के बाद मंदिर बनाने वाले कारीगरों के सीधे हाथों को काट दिया ताकि वह कहीं और ऐसा मंदिर न बना सकें। यहां पर होने वाली विशेष पूजा को घोर पूजा के नाम से जाना जाता है। यह पूजा मंदिर में ही आयोजित की जाती है।
हर साल १४ मई को मंदिर में देवी जी का जन्मदिन मनाया जाता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और दर्शन करते हैं। मनाली में देवी हिडिम्बा का मंदिर बहुत भव्य और कला की दृष्टि से बहुत उत्कृष्ठ है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसके नीचे देवी का स्थान माना जाता है। चटटान को स्थानीय बोली में ‘ढूंग’ कहते हैं इसलिए देवी को ‘ढूंगरी देवी’ भी कहा जाता है। और इन्हें ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है।
महाभारत से संबंध-
महाभारत काल के वनवास काल में जब पांडवों का घर(लाक्षागृह) जला दिया गया तो विदुर के परामर्श पर वे वहां से निकलकर एक दूसरे वन में चलें गए, जहाँ पीली आंखों वाला हिडिम्ब राक्षस अपनी बहन हिंडिम्बा के साथ रहा करता था। एक दिन हिडिम्ब ने अपनी बहन हिडिम्बा से वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिडिम्बा ने पांचों भाइयों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। इस राक्षसी का भीम को देखते ही उससे प्रेम हो गया इस कारण इसने सबको नहीं मारा जो हिडिम्ब को बहुत बुरा लगा। फिर क्रोधित होकर हिडिम्ब ने पाण्डवों पर हमला किया, इस युद्ध में भीम ने हिडिम्ब को मार डाला और फिर वहां जंगल में कुन्ति के आदेश पर भीम एवं हिडिम्बा दोनों का विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के सम्पर्कं में आने पर उन्होंने हिडिम्बा देवी को लोगों के कल्याण के लिए प्रेरित किया था।
विहंगमणि पाल को कुल्लू के शासक होने का वरदान हिडिम्बा देवी ने ही दिया था। वह कुल्लू के पहले शासक विहंगमणि पाल की दादी और कुल की देवी भी कहलाती है। कुल्लू का दशहरा तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हिडिम्बा वहां न पहुंच जाए।
देवी रूपी हिडिम्बा में लोगों की आस्था-
देवी हिडिम्बा को यहां के स्थानीय लोग माता दुर्गा के रूप में पूजन-अर्चन करते है। ऐसा कहा जाता है कि समय-समय पर माता ने अपने भक्तों को कई राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। जिसकी फलस्वरूप यहां के लोगों ने उन्हें माता दुर्गा का अवतार मानते हुए उनकी पूजन-अर्चन करने लगे। इस मंदिर में माता हिडिम्बा की तकरीबन ६० सेंटीमीटर ऊंची पत्थर से बनी मूर्ति है। इस मंदिर में सिर्फ सुबह के समय ही पूजा की जाती है। वहीं उनका जन्मदिवस हर साल मई के १४ से १७ तारीख तक बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इनके जन्मदिवस पर मंदिर परिसर में दशहरे जैसे माहौल रहता है इस उत्सव को छोटा दशहरा भी कहा जाता है। घाटी के दर्जनभर देवी-देवता माता के जन्मदिवस पर शरीक होते हैं तथा अपने भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। जिसकी रौनक ढुंगरी व मनु महाराज की नगरी मनाली गांव में भी रहती है। यह मनाली मॉल से एक किलोमीटर दूर देवदार के घने व गगन चुंबी जंगलों के बीच में स्थित है।