Kya hai Naag Panchami, Iska Pujan Vidhan aur Iske pichhe ki Katha?

0
1352
views
Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
17

क्या है नागपंचमी, इसका पूजन विधान एवं इसके पिछे की कथा?

naag panchami-3

नागपंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर बार श्रावण महिने के शुक्ल पक्ष की पंचमीं को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। और नागों को देवता तुल्य मानकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार २७ अगस्त को नागपंचमी सुबह 7 बजकर 2 मिनट पर कर्क लग्न में शुरू हो रही है। और 7 बजकर 14 मिनट पर कर्क लग्न में समाप्त हो रहा है। इस नागपंचमी पर्व को भैया पंचमी भी कहा जाता हैै। इस दिन महिलाएं सापों को अपने भाई मान कर उसका पूजर्न-अर्चन करती है एवं सभी कष्टों से अपनी रक्षा की प्रार्थना भी करती है। रिवाजानुसार इस दिन नाग को दूध पिलाने की प्रथा है। इस दिन गांव क्षेत्र में एक मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग अपने परिवार संग मेला में लगे झूले और मिष्ठान का लुफ्त लेते है। इस दिन पहलवानी का खेल कुश्ती का भी आयोजन किया जाता है। जो कि मेला का आर्कषण का केन्द्र रहता है। इस दिन किशान खेतों एवं फसलों की पूजा करते हैं और अपनें जानवर( बैल और गायों को नदी में नहलाके) उसकी भी पूजा करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर विवाहित बेटियों को मायके में बुलाया जाता हैं। उनके परिवार को भोजन करवा कर दान दिया जाता हैं।

नाग पंचमी की पूजन-विधान-

भारत देश में इसके पूजा का नियम अलग होता हैं कई तरह की मान्यता होती हैं। एक तरह की नाग पंचमी पूजा विधि आप को यहां दी जा रही है।

naag panchami-1१. सुबह सूर्योंदय से पूर्व जागना और स्नान आदि से निर्वित होकर निर्मल स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए।
२. भोजन में सभी के अलग नियम होते हैं अवम उन्ही के अनुसार भोग लगाया जाता हैं। कई घरों में दाल-बाटी बनती हैं। कई लोगों के यहां खीर-पुड़ी बनती है। कईयों के यहा चावल बनाना गलत माना जाता हैं। कई परिवार इस दिन चूल्हा नहीं जलाते अत: उनके घर बासी खाना का रिवाज होता हैं। इस तरह सभी अपने हिसाब से भोग तैयार करते हैं।
३. इसके बाद पूजा के लिए घर की एक दीवार पर गेरू के पत्थर से लेप कर एक हिस्सा शुद्ध किया जाता हैं। यह दीवार कई लोगों के घर की प्रवेशद्वार होती हैं तो कई के रसौई घर की दीवार। इस छोटे से भाग पर कोयले एवं घी से बने काजल की तरह के लेप से एक चौकोर डिब्बा बनाया जाता हैं। इस डिब्बे के अन्दर छोटे-छोटे सर्प बनाये जाते हैं। इस तरह की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती हैं।
४. कई परिवारों के यहां यह नाग की आकृति कागज पर बनाई जाती हैं।
५. कई परिवार घर के द्वार पर चन्दन से नाग की आकृति बनाते हैं और विधि-विधान से पूजा करते है।
६. इस पूजा के बाद घरों में सपेरे को बुलाया जाता हैं जिनके पास टोकरी में नाग होता हैं जिसके दांत नहीं होते साथ ही उनका जहर निकाल दिया जाता हैं। उनकी पूजा की जाती हैं। जिसमें अक्षत, पुष्प, कुमकुम, दूध एवं भोजन का भोग लगाया जाता है।
७. नाग को दूध पिलाने की प्रथा हैं।
८. सपेरे को दान दिया जाता हैं।
९. कई लोग इस दिन किमत देकर नागों को सपेरे के बंधन से मुक्त भी कराते है।
१०. इस दिन बाम्बी के भी दर्शन किये जाते हैं। बाम्बी सर्प के रहने का स्थान होता हैं। जो की मिट्टी से बना होता हैं उसमें छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। यह एक टीले के समान दिखाई देता हैेंं।
इस प्रकार नाग पंचमी पर्व पर पूजा का समापन किया जाता है जिसके बाद सारे परिवार संग भोजन कर दिन की शुरूआत होती है।

इसके पिछे की कथा और क्यों कहा जाता है भैया पंचमी-

Naagvashuki Mandir

प्राचीन काल में एक धनवान के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की सुशील कन्या थी, परंतु उसके कोई भाई नहीं था। एक दिन घर की बड़ी बहू ने घर लिपने के लिए अपनी सभी बहुओं को साथ लेकर पास के खेत पर गई जहां बड़ी बहू के खेत में मिट्टी खोदने के दौरान एक सांप जमीन से बाहर आ गया। इसको देख बड़ी बहू ने उसको खूरपी से मारने का प्रयास किया जिसपर सबसे छोटी बहू ने यह कहकर रोक दिया कि यह बेजूबान जानवर इसे न मारकर जाने दे। कुछ दिन बाद उसी छोटी बहू के स्वप्न में वही सांप आया और जान बचाने और जीवन भर उसकी एक बहन की तरह सभी परेशानियों से बचाने की बात कही। सुबह नींद खुलने पर उसने स्वप्न को सच न समझ कर भूल गई। कुछ दिन सभी बहुएं अपने मांयके चली गई और वापिस आने के बाद अपने मांयके की खूब बढ़ाई करने के साथ अपने संग लाये ढेरों आभूषणों को दिखा कर छोटी बहू को ताना मारने लगी। क्योंकि छोटी बहू का कोई मायका नहीं था। उसकी शादी दूर के रिश्तेदारों ने करवायी थी। इसलिए इस दूख को रो कर बीता दिया। इसी दौरान उसको अपने उस स्वप्न के बारे में ध्यान आया जो उसने स्वप्न में एक सांप को उसका भाई मानने की कसम ली थी। छोटी बहू ने मन ही मन उस भाई से मिलने का सोेचा। अगले ही दिन सांप रूपी उस भाई ने एक मानव रूप धारण कर अपनी बहन के घर पहुंच गया और सभी को विश्वास भी दिला दिया की वह उसका दूर का भाई लगता है। और अपने संग छोटी बहू को अपने घर को ले गया। सफर के दौरान उसने उस छोटी बहू को अपने नाग होने और बड़ी बहू से उसकी जान बचाने के बारे में सारी बात बताई। पहले तो छोटी बहू बहुत डर गई। किन्तु नाग रूपी भाई के समझाने के बाद उसका डर दूर हो गया। कुछ दिन बाद उस भाई ने अपनी बहन को खूब सारा धन देकर उसके मायके छोड़ आया। खूब सारा धन देख कर बड़ी बहू ने छोटी बहू के पति के मन में पत्नि का चरित्रहीन होने की बात भर दी। पती द्वारा पूछने पर एवं घर से निकाल देने की बात पर छोटी बहू ने मन ही मन अपने उसी भाई को अपनी मदद और अपनी पवित्रता को साबीत करने के लिए बुलाया। उसी क्षण उसका वह भाई नाग रूप में प्रकट होकर अपनी बहन पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ सभी को डस लेने की बात कही। सभी ने इस पर नाग से अपनी जान बचाने की और कभी भी छोटी बहू पर कोई अत्याचार न करने की सौगंध ली। जिसके बाद छोटी बहू के पती ने नाग को काफी सत्कार किया। जिसके बाद सांप द्वारा अपने भाई होने का अपना फर्ज निभाने से नांगो की पूजा सावन की शुक्ल पंचमी के दिन लड़कियां नाग को अपना भाई मानकर पूजा करती हैं। और अपने घर की धन्य धान की पूर्ति हेतू मनोकामनाएं मांगती हैं। इस लिए इस नाग पंचमी पर्व को भैया पंचमी भी कहा जाता हैं।

नोट:-  नाग पंचमी के दिन नाग देवता के मंदिर में श्री फल चढ़ाया जाता है और ॐ कुरूकुल्ये हुं फट् स्वाहा का श्लोक का उच्चारण कर सांपो का जहर उतारा जाता हैं। और नागो के प्रकोप से बचने के लिए नाम पंचमी की पूजा की जाती हैं।

नाग पंचमी को करें ज्योतिष उपाय-

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है, ‘‘मैं नागों में अनंत(शेषनाग) हूँ’’। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागपंचमी के दिन ही नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।
naag panchami-2
महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार अर्जुन के पौत्र परीक्षित ने एक बार तपस्या में लीन ऋषि के गले में कलयुग के वश में होने के कारण एक मृत सांप डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य शृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि आज से सात दिन बाद तक्षक नामक सांप आ कर डस लेगा। सात दिनों के बाद उसी तक्षक सांप ने राजा परीक्षित को डस लिया। जिसके बाद परीक्षित के पुत्र जन्मजय ने विशाल ‘सर्प यज्ञ’ किया जिसमें सर्पों की आहुतियां दी। इस यज्ञ को रूकवाने हेतू महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का कारण यह था कि महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी। इसी से वे यज्ञ होते देख न सके। सर्प यज्ञ रूकवाने, लड़ाई को खत्म करने पुन: अच्छे सबंधों को बनाने हेतू आर्यों ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में ‘सर्प पूजा’ की शुरूआत की।

नोट:- अगर आप को सांपो से डर लगता हो तो सुबह जागने के बाद अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया, इन ९ देव नागों का स्मरण कीजिए। आपका डर खत्म हो जाएगा। नित्य इनका नाम स्मरण करने से धन भी मिलता है, खासकर जिनकी कुण्डली में राहु और केतु अपनी नीच राशियों- वृश्चिक, वृष, धनु और मिथुन में हो तो उन्हें अवश्य ही पूजा करनी चाहिए।

राहु और केतु की खराब दशा से गुजर रहे लोगोें को नाग पंचमी की पूजा से बड़ी राहत मिलेगी। नागों की इसी महिमा का गुणगान है नाग पंचमी। दत्तात्रेय जी के 24 गुरूओं में एक नाग देवता भी थे। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला पर्व असल में शिव जी की ही पूजा है। शिव जी गले में वासुकि नाग जो धारण कर रखा है। इस लिए इस दिन सच्चे मन से विधि-विधान से पूजन करने वाले सभी भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Like
Like Love Haha Wow Sad Angry
17

Warning: A non-numeric value encountered in /home/gyaansagar/public_html/wp-content/themes/ionMag/includes/wp_booster/td_block.php on line 1008

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here