दुनिया का सबसे रहस्यमय मंदिर श्री जगन्नाथ मंदिर
क्या जगन्नाथ मंदिर में मौजूद है श्रीकृष्ण की मृत्यु का रहस्य?
क्यों १२ वर्ष के बाद मूर्ति बदलने के दौरान पुजारीयोें के आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है?
क्यों इस दौरान पूरे शहर की सरकार द्वारा बिजली बाधित कर दी जाती है?
रहस्य एक ऐसा शब्द है जो की इस सृष्टि के निर्माण से लेकर आज तक बरकरार है। भगवान जगन्नाथ अर्थात ‘‘ब्रह्माण्ड के भगवान’’, उनका मंदिर ओड़िशा के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक, और यह ओड़िशा के तटीय शहर पुरी मे स्थित है। इस स्थान पर अनगिनत भक्त शांति की खोज में पहुंचते हैं जो जगन्नाथ मंदिर के त्रय देवताओं द्वारा प्रदान की जाती है।
बता दें कि मंदिर, अपनी शानदार चमक के साथ, आपको शास्त्रीय युग में ले जाता है। मंदिर मे बजती घंटियां, ६५ फुट ऊंची अद्भुत पिरामिड संरचना, हर एक जानकारी से खुदी उत्कीर्ण दीवारें, भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करते स्तंभ। ये सब और अन्य कई कारक हर साल लाखों श्रद्धालुओं को जगन्नाथ मंदिर की ओर आकर्षित करते हैं।
वहीं मंदिर से जुड़ी एक बात है जो की एक चर्चा का विषय बना हुआ है। कि जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर ब्रह्म रूपी एक पिण्ड छिपा रखा हुआ है। लोगोें की यह प्रबल मान्यता है और सूत्रों की मानें तो भगवान जगन्नाद की प्रतिमा के भीतर ब्रह्मा जी का वास है। जब श्रीकृष्ण ने धरती पर अवतार लिया तब उनकी शक्तियां अलौकिक थीं लेकिन शरीर तो मानव का ही था, जो नश्वर था। जब द्वापर यूग के समापन के दौरान धरती पर उनकी लीला की अवधि संपूर्ण हुई तो वे देह त्यागकर स्वधाम चले गए। तब पांडवों ने उनके शरीर का दाह-संस्कार कर दिया लेकिन कृष्ण का दिल(पिण्ड) जलता ही रहा। ईश्वर के आदेशानुसार पिण्ड को पांडवों ने जल में प्रवाहित कर दिया। उस पिण्ड ने लट्ठे का रूप ले लिया। राजा इन्द्रद्युम्न, जो कि भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे, उनको एक दिन स्वप्न में कृष्ण जी ने दर्शन देकर समुद्र किनारे पड़े लट्ठ के संबंध में बताया। जिसके बाद वे समुद्र किनारे गये, राजा को वह लट्ठ मिल गया और उन्होंने इसे जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्थापित कर दिया। उस दिन से लेकर आज तक वह लट्ठा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर है। हर १२ साल के अंतराल के बाद जगन्नाथ की मूर्ति बदलती है लेकिन यह लट्ठा उसी में रहता है।
इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि १२ साल में मूर्ति के बदलाव के दौरान आज तक किसी ने इस लट्ठे को नही देखा। मंदिर परिसर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाते है। और न ही छूकर महसूस कर पाते हैं। पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतान सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है। पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्म को देख लेगा तो उसकी वहीं पर मृत्यु हो जाएगी। इसी वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा शहर में उड़ीसा सरकार द्वारा बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में ब्रह्मा का वास है। वहीं पूरी के श्री जगन्नाथ मंदिर कार्यालय के फोन संख्या ०६७५२ २२२००२ पर हुई फोन वार्ता में बताया गया कि पांडवों ने श्री कृष्ण की मृत्य देह का दाह-संस्कार नही किया था। उन्होंने उनके देह को भूमि में दफना दिया था। और जहां मंदिर परिसर के गर्भ-गृह में स्थापित मूर्ति के विषय मे बताया कि इस मंदिर के उद्गम से जुड़ी परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरू वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी चकाचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। मालवा नेरश इंंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी थी। तब उन्होंने कड़ी तपस्या की और तब भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक दारू(लकड़ी) का लट्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लट्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किन्तु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आयेगा। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कमरे के भीतर से कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे के भीतर झांका और यह देख वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तिंया अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तिया ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगी। तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभ्रद और सुभद्रा की मूर्तिया मंदिर में स्थापित की गयी।
और तभी से निरन्तर उनकी पुजन-अर्चन विधी-विधान से होती आ रही है। वहीं दूसरी तरफ हमारे द्वारा श्री जगन्नाथ मंदिर कार्यालय के प्रतिनिधीयों से पूछे जाने पर कि क्या मंदिर परिसर के पुजारी जो इस मूर्ति को १२ वर्षों में बदलते हैं, उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। ताकि वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए। और न ही उसे छूकर महसूस कर पाए। पुजारियों के कथन अनुसार वह लट्ठा इतान सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है। पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्म को देख लेगा तो उसकी वहीं पर मृत्यु हो जाएगी। इसी वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा शहर में उड़ीसा सरकार द्वारा बिजली बाधित कर दी जाती है। जिस पर कार्यालय द्वारा इस बात को सच बताया गया है। इस बात को सून कर हमारी जिज्ञासा को मानों जैसे पंख लग गये हो। वैसे कहा जाता है कि उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी एक रहस्य से भरा हुआ विषय है।