MahaLakshmi ki 16 Versho tak Ye Vrat kerne se milti hai Her Janm me Manushya ko Nirdhanta aur Daridrata se Mukti!

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महालक्ष्मी की १६ वर्षों तक ये व्रत करने से मिलती है हर जन्म में मनुष्य को निर्धनता एवं दरिद्रता से मुक्ति!

lakshmiआज के दौर में हर मनुष्य का एक ही स्वप्न होता है निर्धनता और दरिद्रता से मुक्ति। जिसके लिए उसका हर सम्भव प्रयास होता है चाहे वो दिन हो या रात हो, समय के हर पल उसकी पहली और आखरी सोच पैसों को अधिक से अधिक संचय करना होता हैं। जिसके लिए वह काफी हद तक अपने इस जन्म को धन से सम्पन्नता हेतू करने में सफल भी हो जाता हैं। लेकिन क्या ऐसा कोई उपाय या फिर ऐसा कोई व्रत जिसके करने के फलस्वरूप से उस मनुष्य के आने वाले हर जन्म में निर्धनता और दरिद्रता से उसे मुक्ति मिल जाये। हम लोग यह भलिभांति जानतें है कि आज का किया हुआ कार्य हमारे अगले जन्म के भविष्य का निमार्ण करती हैं। जिसके लिए हम तीर्थों का गमन के साथ घर में पूजन-अर्चन करते हैं। मंदिरों का चक्कर लगाते हैं। ताकि जो कष्ट धन के अभाव में हमें इस जन्म में मिले है वह कष्ट हमें अगले जन्म में न मिले। इसी क्रम में आज हम आपको एक महालक्ष्मी व्रत के बारे में बताने जा रहें जिसे १६ वर्षों तक करने के बाद हमारा यह जन्म में निर्धनता और दरिद्रता तो दूर होती है इसके साथ ही साथ हमारे अगले हर जन्म में निर्धनता और दरिद्रता से हमें सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है।

व्रत करने की विधि-

निर्धनता और दरिद्रता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माँ लक्ष्मी का व्रत किया जाता हैं। इस दिन करने से माँ लक्ष्मी हाथी पर सवार हो कर आपके घर मंदिर में प्रवेश करती है। यह व्रत मनुष्य को लगातार १६ वर्षोंं तक करना होता है। इस व्रत को करने से पूर्व भादो शुक्ल अष्टमी को स्नानादी करके दो दूने से सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोए जाते हैं। ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत(धागे) से १६ तार का एक डोरा लें और हल्दी से पीला करके उसमें १६ गाठ लगाएं और प्रतिदिन १६ दिनों तक इन्हें पानी से इसे सींचे और १६ दिनों तक इसकी नियमित पूजा करें। इसके साथ आटे का एक दीपक बनाकर १६ पूरियों के ऊपर रख दें तथा पूजन करते समय इस दीपक को जलाना चाहिए। इस दौरान माँ लक्ष्मी के कथा का पाठ जरूर करे। एक बात का विशेष ध्यान रखें कि कथा के समापन से पहले किसी भी हालत में दीपक बूझना नहीं चाहिए। इस दिन माँ लक्ष्मी के श्रीयंत्र की भी पूजा कर सकते हैं। कार्यक्रम के समापन में पूजा में रखें गये १६ पूरियों को दही के साथ स्वयं ग्रहण करें। व्रत के दौरान आप केवल एक समय का ही भोजन ग्रहण करें। ऐसा करना लाभकारी होता हैं एवं माँ लक्ष्मी का विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।

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