मिल गया है भगवान गणेश का कटा हुआ मस्तक, कहाँ पर है? आइये जानते हैं
रोचक और रहस्यों से भरा कई आलौकिक बातें, जिसे जान कर आप भी हो जायेंगे हैरान। हमारें मन मंदिर में एक ही ख्याल आता हैं कि:-
कहाँ है गणेश का कटा हुआ मस्तक?
क्या कोई पत्थर बता सकता है कलियुग का अंत?
कहाँ भगवान शिव देते है अपने जटाओं के साक्षात दर्शन?
क्या एक ही स्थान पर अमरनाथ, बद्रीनाथ और केदारनाथ के दर्शन हो सकते हैं?
आज हम इन्हीं सभी सवालों के जवाब आपकों देगें। बता दें कि भारत के उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर नामक स्थान पर जा कर हमें इन सभी सवालों का जवाब मिलता है। यह गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब ९० फीट अंदर है। यहां पहुंचने के लिए उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए १६० किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा को पहुंच सकते है।
भगवान गणेश का कटा हुआ मस्तक आज भी इस गुफा में रखा हुआ है-
गणेश भगवान को तीनों त्रिदेवों एवं सभी देवताओं से उच्चा स्थान हासिल है। एवं हमारें किसी कार्य के शुभारम्भ में हम हमेशा पहले भगवान गणेश की पूजा करते है। क्यों कि गणेश को हमारे हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य माना गया है। इनके जन्म के बारे में कई कथाएं विश्व प्रचलित हैं। बता दें कि गणेश जी का मस्तक उनके पिता शिव ने क्रोध वश स्वयं अपने त्रिशूल के द्वारा विच्छेद्न किया था। जिसके बाद माता पार्वती के कहने पर एक हाथी का मस्तक उनके धड़ से जोड़ दिया गया था। और भगवान शिव ने उनके इसी कटे हुए मस्तक को इस पाताल भुवनेश्वर गुफा में स्थापित कर दिया था।
एवं उनके कटे हुए मस्तक के उपर एक १०८ वाली पंखुड़ियों वाले कमल(शवाष्टक दल ब्रह्मकमल) को भी स्थापित किया था। जो आज भी अपने माध्यम से जल की दिव्य बूंदे रोज गणेश जी के कटे हुए मस्तक के मुख में अर्पित करता है। जिसे देख भक्तगण अजम्भित होते है।
कुछ आगे जाने पर हमें एक पत्थर मिलता है
जिसके बारे में मान्यता है कि यह पत्थर कलियुग के बारें में सारी सच्चाई बयां करता है। बता दें कि इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक रूम में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतिक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतिक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा। अपने अगले पड़ाव में हमें गुफा के भीतर
बद्रीनाथ, अमरनाथ और केदारनाथ के होने का प्रमाण मिला। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरूण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं।
तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है
तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं(शिव की जटाएं) फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि ‘‘मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।’’
स्कन्द पुराण में इसके पौराणिक महत्व का वर्णन मिलता है। कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर गुफा में विराजमान है। और उनके स्तुति हेतू अन्य देवी-देवता गण भी मौजूद रहते है। पुराण में यह भी वर्णन है कि त्रेता काल में अयोध्या नरेश सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक हिरण का आखेत करने हेतू पीछा करते हुए इस पाताल भुवनेश्वर गुफा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफा के भीतर महादेव शिव सहित ३३ कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किये थे।
वहीं द्ववापर काल में पाण्डवों ने यहां पर चौपड़ खेला और कलियुग में जगदगुरू आदि शंकराचार्य का ८२२ ई के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ
तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया था।