नागचंद्रेशर मंदिर,
सालभर में मात्र एक दिन खुलने वाला यह मंदिर में तक्षक सर्प साक्षात देते है भक्तों को दर्शन!
नाग, एक ऐसा शब्द जिसका नाम लेते ही लोग शन्न रह जाते है। जिसको आमजनमानस कभी भी अपने घर या आस-पास नहीं देखना चाहता। जिसका खौफ ही इतना है कि बिना देखें मात्र उसका नाम आपके मन को भयभित कर देता है। लेकिन इस का असर हमारें जन्म कुण्डली में कालसर्प दोष के नाम से एक महत्व स्थान रखता है। जिसके चलते हम वेदिक पंडीतों द्वारा इसका समाधान कराते है एवं इनसे संबंधित मंदिरों में कृर्पा हेतू दर्शन को भी जातें है। इसी क्रम में आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहें है जो न की अपने प्रताप के लिए जग विख्यात है बल्कि अपने मंदिर के सालभर में मात्र एक दिन खुलने वाली बात के लिए भी चर्चा में रहती है। मान्यता है किे कुण्डली में काल सर्प दोष से पीड़ित चल रहें जातक अगर इस नागचंदे्रश्वर नामक मंदिर में एक बार दर्शन कर ले तो फिर उनको कहीं और जाने की या किसी प्रकार का समाधान की चरूरत नहीं पड़ती है। नागचंद्रेशर के दर्शन के बाद उनके सारे कष्ट एवं कुण्डली दोष दूर हो जाते है।
मनमोहक प्रतिमा है नागचंद्रेशर की-
उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के सबसे ऊपरी तल पर बने इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग यहां नागपंचमी(यह वह पंचमी होती है जिस दिन नागों का जन्म हुआ) के दिन पहुंचते हैं। नागचंद्रेश्वर के दर्शनों के लिए एक दिन पहले ही यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग जाती है। मंदिर में प्रवेश करते ही दार्इं ओर भगवान नागचंद्रेश्वर की मनमोहक प्रतिमा के दर्शन होते हैं। दश फन वालें नाग के आसन पर विराजित शिव-पार्वती की सुंदर प्रतिमा के दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को धन्य मानते हैं। यह प्रतिमा मराठाकालीन कला का उत्कृष्ट नमूना है एवं यह प्रतिमा शिव-शक्ति का साकार रूप है।
मंदिर के अनुसार कभी नागराज का जोड़ा यहां रहा करता था-
मंदिर में रह रहें वर्षों से कार्यरत पुजारियों का कहना है कि कभी नागराज तक्षक का जोड़ा स्वयं इस मंदिर में रहता था। कई लोगों ने इनके साक्षात दर्शन भी किए हैं।
११वीं शताब्दी की नेपाल से लाई गई प्रतिमा है इस मंदिर में-
नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा आज से १००० वर्ष पूराना है और इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। बता दें कि यह प्रतिमा अपने आप में अद्भुत प्रतिमा है। इस प्रतिमा में भगवान शिव-पार्वती फन फैलाए नाग के आसन पर विराजित है। उनके साथ श्री गणेश भी आपको दिखाई देगें। भगवान शिव के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए नजर आते है। ऐसी दूसरी प्रतिमा पूरे दुनिया में किसी और मंदिर में नहीं मिलती है इस लिए इसके दर्शन करने हेतू श्राद्धालु सालभर इस मंदिर के पट खुलने का इंतजार करते है।
इतिहास के पन्नों में दर्ज है इसके अति प्राचीन होने का राज-
यह मंदिर अति प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने १०५० र्इं के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने १७३२ में महाकाल मंदिर का जीणोद्धार करवाया था। उस समय इस नागचंद्रेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। प्रशासन के अनुसार हर वर्ष लगभग २ लाख श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर के दर्शन हेतू आते है। वहीं सभी की यही मनोकामना रहती है किे नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। बता दें कि नागचंदे्रश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है। पुजारियों के कथन अनुसार हर वर्ष इस मंदिर का कपाट श्रावण महिने के शुक्ल पक्ष के पंचमी के एक दिन पूर्व रात १२ बजे मंदिर का पट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है जिसके २४ घण्टों के बाद रात १२ बजे फिर से पूरे सालभर के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है।
सरकारी पूजा, जिसमें शामिल होते है क्षेत्र के कलेक्टर-
नागपंचमी को दोपहर बारह बजे क्षेत्र के कलेक्टर द्वारा पूजन-अर्चन कराया जाता है। रियासतकाल से वहां के पुजारियों ने अपने पीड़ि दर पीड़ि इस परंपरा को चलाते आ रहे है। वहीं रात्री के ८ बजे श्रीमहाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन किया जाता हैं। इसमें मंदिर समिति के प्रशासक सपत्नीक पूजा में शामिल होते हैं।
इसके पिछे की कथा-
कहा जाता है कि तीनों भाईयों( जेष्ठ अनंत, मंक्षला तक्षक और अनूज वासुकी) में अनंत भगवान विष्णु के शरण में चले गये थे और वासुकी भगवान शिव के। जिसके बाद त्रिदेवों ने नाग वंश के भविष्य एवं उनकी सूरक्षा हेतू तक्षक को उनका राजा के रूप में नागराज के पद पर घोषित कर दिया। जिसके बाद तक्षक ने अपनी इच्छा हेतू भगवान शिव का घोर तपस्या की। तक्षक के घोर तपस्या से प्रसन्न भोलेनाथ ने तक्षक से उसके मनवांक्षित इच्छा के बारे में पूछा। जिसमें तक्षक ने अमरत्व का वरदान मांगा। भोलेनाथ ने तक्षक को अमरत्व का वरदान दे दिया।
नोट:- इसके बाद तक्षक ने एक और वरदान मांगा जिसमें महाकाल वन में वास करने के दरम्यान उनके एकांत में उन्हें किसी भी तरह का विघ्न ना हो। तक्षक के इस मांग को भी भगवान भोलेनाथ ने पूरा किया। अत: यही कारण है कि उनके इस नागचंद्रेश्वर मंदिर का पट सालभर में एक दिन ही खोला जाता है।