नायाब इंजीनियरिंग का नमूना ओल्ड यमुना ब्रिज
ऐतिहासिक नैनी रेलवे का डबल सजा पुलिंदा पुल नई दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य कर रहा है। तकरीबन अपना 151 साल पुरा किया हुआ ये बूढ़ा ब्रिज जो हावड़ा, कोलकाता सहित पूर्वी भारत के साथ देश को जोड़ता है और अब भी मजबूत हालत में है। रेलवे का यह एक महत्वपूर्ण धमनी है। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में बना यह पुल अपने में एक अनुठा इतिहास सजोंया हुआ है। आमजनमानस का कहना है कि इस पुल में एक भी नट नहीं लगा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ 14 पिलरों वाला इस पुल में बाकियों 13 पिलरों से अलग हाथी पांव जैसा प्रतीत होने वाला एक पीलर भी है। जो आने-जाने वाले ब्रिज पर लोगों का जिज्ञासा का विषय बना रहता है। इस पुल को ईस्ट इंडिया कंपनी के इंजीनियर रेनडेल द्वारा डिजाइन किया गया था। नीचे नींव की गहराई 42 फीट तक है और गार्डर को नीचे करने के लिए कम जल स्तर से ऊचाई 58.75 फीट है। गार्डर का वजन 4300 टन है। यह अनुमान है कि चिनाई और ईंट के काम के संबंध में 2.5 मिलियन घन फीट पुल में इस्तेमाल किया गया था। इसके निर्माण में कुल लागत 44,46,300 रूपये खर्च हुऐ थे, जिसमें से 14,63,300 रूपयें गार्डरों की लागत में खर्च हुआ था। इसकी कुल लम्बाई 1,006 मीटर(3,301 फुट) है। इसके निमार्ण में स्टील का उपयोग किया गया था। यह इलाहाबाद में सबसे लंबे समय तक और सबसे पुराने पुलों में से एक है। सन् 1855 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस पुल को बनाए जाने की अपनी तैयारी शुरू कर ली थी। इस दौरान लोकेशन भी डिजाइन कर लिया गया था। जिसके कुछ वर्ष बाद 1859 में पुल बनाने का कार्य शुरू हुआ। इसके निर्माण में तकरीबन 6 साल का वक्त लगा। इस ब्रिज में रेल आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ। जिसके बाद यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। इस ब्रिज पर हर रोज औसतन दो सौ ट्रेनों की आवाजाही होती है। ब्रिटिश सरकार की हुकूमत में देश के दो प्रमुख केंद्र दिल्ली और कोलकाता ही थे। जिस कारणवश व्यापार बढ़ाने के नजरिये से हावड़ा-दिल्ली रेलमार्ग तैयार करने में पुल के निमार्ण करने के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ गया था। इसके बाकी 13 पिलर 1862 तक बन चुके थे। फिर भी बाकी एक पिलर की निर्माण यमुना नदी के तेज बहाव होने के कारणवश पुरा नही किया जा पा रहा था। जिसके फलस्वरूप यमुना नदी के पानी का जल स्तर 9 फिट से नीचे उतारा गया था। अच्छी तरह से कुंआ को खोदा गया और इसमें राख और पत्थरों का एक फर्श रखी गई। जिसके बाद ही इस पिलर का निर्माण सम्भव हो सका। इसका आकार देखने में हाथी पांव जैसा लग रहा था जिससे इसका नाम हाथी पांव( एलीफेंट फुट) पड़ गया।
इस पुल के ऊपर के दो किनारों पर रेल लाइनों और नीचे आमजनमानस के आने-जाने के लिए सड़को का भी निर्माण किया गया था। जो कि आज तक ब्रिज रोडवेज और रेलवे की क्षमता को समेटे हुए है। जबकि निचले डेक सफलतापूर्वक 1927 के बाद से सड़क सेवाए शुरू किया गया था। उपरी डेक, एक दो लेन रेलवे लाइन है जो इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन के नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन से जोड़ता है। 1928-29 में, पुराने गार्डरों नए द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। दूसरी तरफ जल्द से जल्द विद्युतीकरण किये जाने हेतू मस्तूल उपरि कर्षण संपर्क तारों को ले जाने के लिए बनवाया गया था। दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर इस ब्रिज की जगह अब तक रेलवे की ओर से कोई दूसरा ब्रिज बनाने की तैयारी नहीं की गई है। रेलवे का दावा है कि पुल आज भी सुरक्षा की दृष्टी से पूरी तरह से मजबूत है। शायद इसी वजह से अंग्रेजों के जमाने के जो भी ब्रिज मौजूदा समय चालू हालत में है, उसमें से सर्वाधिक ट्रेनों की आवाजाही वर्तमान समय में नैनी ओल्ड ब्रिज से ही हो रही है। इसकी निगरानी हर रोज रेलवे प्रशासन द्वारा की जाती है। वहीं ट्रेन परिचालन के अनुसार यह बूड़ा पुल पूरी तरह से सुरक्षित है।