जाने संसार के सर्वश्रेष्ट शिवलिंग के बारे में
भारतीय सभ्यता के प्राचीन अभिलेखो एवं स्त्रोतों से भी ज्ञात होता है कि आदि काल से ही मनुष्य शिवलिंग की पूजा करते आ रहे हैं। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसी क्रम में पुराणों और प्राचीन भारतीय संहिताओं में पारद शिवलिंग का विस्तार रूप से वर्णन किया गया है। शिवपुराण के अनुसार गौ का हत्यारा, कृतध्न(एहसान फरामोश), गर्भस्थ शिशु का हत्यारा, शरणागत का हत्यारा, मित्रघाती, विश्वासघाती, दुष्ट व महापापी भी यदि पारद शिवलिंग की पूजन करता है, तो वह भी तुरंत सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
गोघ्नश्चैव कृतध्नश्च वीरहा भूणन्हाफ्विा।
शरणागति धाति च मित्र विश्रम्भ घातकः।।
दुष्ट पाप समाचारो मातृपितृ प्रहापि वा।
अर्चनात् रसलिंगेन तत्तपापात् प्रमुंच्यते।।
वहीं शिवनिर्णय रत्नाकर के टीकाकार के कथन अनुसार मिट्टी या पत्थर से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्ण निर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है। स्वर्ण से करोड़ गुना अधिक मणि और मणि से करोड़ गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से मिलता है। नर्मदेश्वर बाणलिंग से भी करोड़ो गुना अधिक फल पारद निर्मित शिवलिंग से प्राप्त होता है। इससे श्रेष्ठ शिवलिंग संसार में नहीं हुआ है। वाग्भट्ट के अनुसार, जो व्यक्ति पारद शिवलिंग का भक्तिपूर्वक पूजन करता है, वह तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का पुण्य प्राप्त करते हुए समस्त दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त हो जाता है। पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार समय-समय पर कई पौराणिक पात्रों ने पारद शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा और पूजन करके महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की थीं।
लंकापति रावण ने पांच सहस्त्र प्रस्थ (1 प्रस्थ अर्थात 5 किलो) वजन का तूतफेन पारद शिवलिंग विश्वकर्मा से बनवाया था। यही कारण है कि लंका तीनों लोकों में सबसे अधिक शक्तिशाली और अभेद्य दुर्ग बन गया था। इसी तरह देवराज इंद्र द्वारा भी दानवों से स्वर्ग और धरती की रक्षा के लिए वज्रदंती नामक पारद शिवलिंग की स्थापना प्रभास क्षेत्र में की गई थी। इस वजह से देवराज इंद्र बिना युद्ध किऐ दानवों को परास्त करने में सफल हुए थे।
किस प्रकार करें स्थापना –
शास्त्रों में पारद शिवलिंग एवं इसके साथ रखें जाने वाले दक्षिणावर्ती शंख की बहुत ही उच्च महत्ता बताई गई है। आप भी इसे अपने घर में स्थापित कर घर में मौजूद समस्त दोषों से मुक्त हो सकते हैं। लेकिन यह अवश्य ध्यान रखें कि पारद शिवलिंग एवं दक्षिणावर्ती शंख के पूजन के साथ में शिव परिवार का भी पूजन अवश्य करें। पूजन की विधि यहाँ पर दी जा रही है। सर्वप्रथम शिवलिंग को सफेद कपड़े से आवरण किये हुए आसन पर रखें। स्वयं पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए। अपने आसपास जल, गंगाजल, रोली, मोली, चावल, दूध और हल्दी व चन्दन रख लें। सबसे पहले पारद शिवलिंग के दाहिनी तरफ दीपक जला कर रखें। थोड़ा सा जल हाथ में लेकर तीन बार निचे दिये गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करके पी लें।
प्रथम बार ऊँ केश्वाय नमः
दूसरी बार ऊँ नारायणाय नमः
तीसरी बार ऊँ माधवाय नमः
इसके बाद ‘‘ऊँ रिश्री केशाय नमः’’ उच्चारण करके पूनः जल से हाथ धूल लें। फिर हाथों में फूल और चावल लेकर शिवजी का ध्यान करें और मन में ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ का 5 बार स्मरण करें और चावल और फूल को शिवलिंग पर चढ़ा दें।इसके बाद ऊँ नमः शिवाय का निरन्तर उच्चारण करते रहें। फिर हाथ में चावल और पुष्प लेकर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ‘‘ऊँ पार्वत्यै नमः’’ मंत्र का उच्चारण कर चावल पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें। इसके बाद ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ का निरन्तर उच्चारण करते रहें। फिर मोली को और इसके बाद जनेऊ को पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें। इसके पश्चात् हल्दी और चन्दन का तिलक लगा दें। चावल अर्पण करे इसके बाद पुष्प चढ़ा दें। मीठे का भोग लगा दे। भांग, धतूरा और बेलपत्र आदि शिवलिंग पर चढ़ा दें। फिर अन्तिम में शिव की आरती करे और प्रसाद आदि ले लें।
जो व्यक्ति इस प्रकार से पारद शिवलिंग का पूजन करता है उसे शिव की कृपा से सुख-समृद्धि आदि की प्राप्ति हो जाती है। भगवान पारदे्श्वर का महा अभिषेक पूरब की ओर मुँह करके शिव का पूजन करें। वहीं भगवान का पारद का शिवलिंग की जलधारी को उत्तर दिशा की ओर स्थापित करके पूजन को आरम्भ करें। चम्पा और केतकी के फूल छोड़कर सब फूल शिवजी के ऊपर चढ़ाये जा सकते हैं। व्यापार-वृद्धि, आकस्मिक धन के लिए यह कुबेर प्रयोग सम्पन्न होता है। शुक्रवार के दिन किसी स्वच्छ पात्र में पारद-पारस गुटिका स्थापित कर दें, फिर एक सौ आठ कमल के ताजे पुष्प पहले से ही मंगा कर पास रख लें फिर एक कमल का पुष्प हाथ में लें और ‘‘ऊँ महामृत्युंजाय नमः’’ मंत्र का ग्यारह बार उच्चारण कर, कमल का पुष्प पारद-पारस गुटिका पर चढ़ा दें। प्रयोग सम्पन्न होने पर उन कमल की पंखुड़ियों को पूरे घर में बिखेर दें। अभाववश कमल के पुष्प न होने पर उसकी जगह गुलाब का पुष्प भी प्रयोग मे लाया जा सकता है।
विशेष निर्देश-
पारद शिव लिंग को कभी भी सोने से स्पर्श न करायें नहीं तो यह सोने को खा जाता है। एक आदर्श पारद शिवलिंग में कम से कम 70% पारा, 15% मैग्नीशियम तथा 10% कार्बन तथा 5% पोटैसियम कार्बोनेट (अंगमेवा) होना चाहिए। यदि पारद शिवलिंग इन रासायनिक मापदंडों पर खरा उतरता है, तभी वह शुद्ध और परिणाम देने वाला होता है।