पितृदोष क्या है और कुण्डली में कैसे लगता हैं?
हमारे पूर्वज(पितर) जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता तो हमसे वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशिर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानियां उत्पन्न करते है, फलस्वरूप कष्टों तथा र्दुभाग्यों का सामना करना पड़ता है।
कैसे जाने कुण्डली में पितृ दोष है?
ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अत: जब जन्मकुण्डली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है। पितृ दोष से पीड़ित जातक की कुण्डली का अध्ययन कर ग्रह उपचार के द्वारा पितृदोष का निवारण किया जा सकता हैं।
ग्रंथों में वर्णन-
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। जिस जातक के कुण्डली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। दैनिक जीवन में पितृदोष के कई लक्षण दिखाई देते हैं। ज्योतिष के अनुसार विवाह न हो पाना, वैवाहिक जीवन में अशांति, घर में कलेष आदि पितृदोष से होते हैं। हालांकि इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं।