राष्ट्रीय धरोहर गंगा नदी को तलाश है वास्तविक मुक्ति की।
भारत में गंगा नदी को मोक्षदायिनी कहकर बहुत वितंडा किया जा चुका है जबकि इस अद्भुत और जीवनदायिनी नदी को वास्तविक मुक्ति की तलाश है। गंगा ही अगर न रही तो फिर किसे प्रणाम करेंगे हम। गंगा की सफाई का मुद्दा भारत में ८० के दशक से सुलग रहा है। कई नीतियां, कानून, निर्देश, आदेश जारी हुए लेकिन आज गंगा में प्रदूषण खतरनाक स्तरों पर है और दिल्ली में यमुना जैसी दुर्गति की आशंका गंगा को लेकर भी जताई जाने लगी है। गंगा में प्लास्टिक और किसी भी तरह का अन्य मलबा, अस्पतालों का कचरा, अपशिष्ट आदि डाला जाता है।
‘‘नमामि गंगे’’ का आशय हैं-गंगा को प्रणाम करता हूं। लेकिन प्रणाम में अंतर्निहित भावना का भी सम्मान हो तो बात बनेगी। नदियों के प्रति नागरिकों की भी जिम्मेदारी और जवाबदेही बनती है। गंगा सिर्फ आचमन, पूजा पाठ, पाप धुलने, शव बहाने और मिथकीय मान्यताओं से निकली आराधनाओं की नदी ही नहीं है। गंगा नदी भूभाग की जैव विविधता, आर्थिकी और संस्कृति की पोषक और वाहक भी है। गंगा एक बड़े पारिस्थितिकीय तंत्र की वाहिनी है। हमारे पूर्वजों ने उनकी शुचिता को एक मान्यता से शायद इसलिए जोड़ा होगा कि कम से कम उस नाते ये बची तो रहेंगी। गंगा नदी को पुनर्जीवित करने में कोई आचमन, कोई मंत्र, कोई अनुष्ठान काम नहीं आयेगा। काम आयेगा तो एक चिंता, एक जद्दोजहद और एक ईमानदार कामना अपनी नदी को बचाने की।
पिछले ३० साल से गंगा का सरकारी सफाई अभियान जारी है। गंगा एक्शन प्लान पर करोड़ों रूपये बहे जा चुके हैं। एक सरकारी आंकड़ा तो यही कहता है कि १९८५ से लेकर २०१४ तक ४ हजार करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं। अब एक ही झटके में इससे कई गुना बड़ी राशि आ गई है- बीस हजार करोड़ रूपए! फिर भी गंगा मैली और भयावह स्तर पर प्रदूषित है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल- ये वे पांच राज्य हैं जिनसे होकर गंगा बहती है। लेकिन इनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की चरमराई हालत किसी से छिपी नहीं हैं।
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जिसमें गंगा नदी का प्रमुख स्थान है ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। राजमहल की पहाड़ियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है। चंबल और बेतव महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। गंगा नदी की कुल लम्बाई २,५१०(२०७१) कि.मी. हैं। उनका उद्गम स्थान गंगोत्री के निकट गोमुख से है। इनकी सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी है। इनका प्रवाह क्षेत्र उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल सम्बन्धित राज्य है। यह ऐतिहासीक बात है कि गंगा का प्राचीन और आधुनिक नाम दोनों ही गंगा है। आज गंगा नदी प्रदूषण की चपेट में आये भारत के २७ राज्यों में कुल १५० नदियां में शामिल है। प्रदूषित नदियों में १२ नदियों के साथ उत्तर प्रदेश, भारत में तीसरे स्थान पर है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के अंतर्गत १०,७१६ करोड़ रूपये की अनुमोदित लागत से २१ राज्यों के १९९ शहरों की ४२ नदियां शामिल हैं।
केन्द्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली का नजफगढ़ नाला क्षेत्र, पड़ोसी नोएडा और गाजियाबाद के साथ ही हरियाणा का फरीदाबाद और पानीपत देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल हैं। अन्य श्रोतों के माध्यम से उत्तर प्रदेश के सात शहर आगरा, गाजियाबाद, कानपुर, मिर्जापुर, नोएडा, सिंगरौली और वाराणसी भी इस सूची में शामिल हैं। जो कि गंगा को मैली करने में मुख्य भुमिका निभा रही है।
अनुष्ठान नहीं अनिवार्यता है गंगा की सफाई! मान्यताओं के नाम पर खिलवाड़! मुक्ति की तलाश में गंगा! जिम्मेदारी किसकी?
बता दें कि गंगा को कानूनी अधिकार मिल चूका है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हिंदुओं की पवित्र नदियां गंगा और यमुना के जीवित होने की घोषणा करते हुये इन्हें इंसानों की तरह कानूनी अधिकार दिये हैं। अदालत के इस कदम से इन नदियों को साफ रखने में मदद मिल सकती है। न्यायाधीश राजीव शर्मा और आलोक सिंह ने कहा कि यह असामान्य कदम जरूरी था क्योंकि इन दोनों पवित्र नदियों का अस्तिस्व खतरे में है। इस मामले में अधिकारियों ने शिकायत की थी कि उत्तराखंड और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की सरकारें, गंगा की रक्षा के जो प्रयास केन्द्र सरकार कर रही हैं उसमें सहयोग नहीं कर रही है। हाईकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुये कहा गंगा और यमुना को करोड़ों हिंदू पवित्र नदियां मानते हैं। इन्हें कानूनी संरक्षण का अधिकार है और इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। अदालत ने कहा कि विवाद की स्थिति में ये पक्ष भी हो सकते हैं।
अदालत ने आदेश दिया दोनों नदियों का प्रतिनिधित्व, गंगा के संरक्षण से जुड़ी परियोजनाओं की निगरानी करने वाली सरकारी संस्था ‘‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा’’, साथ ही राज्य के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता करेंगे।
केद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री उमा भारती ने दावा किया है कि २०१८ तक गंगा पूरी तरह से साफ हो जाएगी और पहला नतीजा तो इसी साल अक्टूबर में दिखने लगेगा। इस दौरान नमामि गंगे गान, वेबसाइट और नमामि गंगे ऐप भी लॉन्च किए गए।
सरकारी रिर्पोंट के अनुमान बताते हैं कि गोमुख से लेकर गंगा सागर तक, गंगा के ढाई हजार किलोमीटर के सफर में एक अरब लीटर सीवेज उसमें मिल जाता है। घरेलू और औद्योगिक कचरा जो है सो अलग। गंगा के पानी की गुणवत्ता का पैमाना बताता है कि उसमें डिजॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा छह मिलीग्राम प्रति लीटर से कम नहीं होनी चाहिए। दूसरा सूचकांक बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का है। इसे सामान्य रूप से तीन से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन हरिद्वार और उससे आगे गुणवत्ता के ये आकंड़े हाल के दिनों में चिंताजनक पाए गये हैं।