विश्व का एकलौता दिउड़ी नामक मंदिर जहाँ माता अपने सोलह भुजी प्रतिमा के रूप में स्वयं वास करती है!
दिउड़ी मंदिर यह कई दशकों पुराना धार्मिक स्थल एवं स्मारक है जो रचनात्मक स्त्री शक्ति की अवतार हिन्दू देवी दुर्गा को समर्पित है। यह एक ऐसा मंदिर है जो प्रख्याति की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। दिउड़ी मंदिर अपनी मनोहर सुन्दरता के लिए जाना जाता है। दिउड़ी मंदिर झारखण्ड अर्थात राँची शहर दक्षिण दिशा से तकरीबन ६० किमों की दूरी पर विभिन्न देवी-देवताओं की लीला भूमि प्राचीन ताम्रध्वज(तमाड़) नामक स्थान के पास दिउड़ी में है। इसके साथ टाटा-राँची हाईवें(नेशनल हाईवें ३३) से जुड़ा हुआ है। मंदिर का समय सुबह ५ बजे से साम के ८:३० बजे सप्ताह के सातों दिन भक्तों के लिए खुला रहता है।
इस मंदिर के ऊपरी भाग के तरफ देवी-देवताओं की मुर्तियाँ सुशोभित है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको मंदिर के चारों तरफ लाल और पीले कलावा मंदिर के बम्बूओं में बन्धा हुआ मिल जायेगा।
जिसको भक्तगण यहां आकर कलावा को बांधते है और अपने साथ अपने घर को माता का आर्शीवाद स्वरूप ले जाते है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण हेतू बलुयी पत्थर का उपयोग हुआ है और एक पत्थर को दूसरे पत्थर के साथ रखने में किसी तरह का कोई सीमेन्ट मटेरियल का उपयोग नहीं हुआ है।
इसके साथ एक रोचक बात यह है कि आपने हमेशा से माता का अष्ट भूजा वाली प्रतिमा देखा होगा या दस भुजा वाली देखा होगा। लेकिन यह दिउड़ी मंदिर अपने आप में एकलौता मंदिर है जहां माता का सोलह भुजा वाली प्रतिमा स्थापित है। जो कि यहां का मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। इस लिये इस मंदिर को दिउड़ी मंदिर के साथ सोलहभुजी माँ दुर्गा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोंधार करने के लिए कई सम्पन्न नगर सेठ आगे आये पर देवी के प्रकोप के कारण उनको इसका खामियाजा उठाना पड़ा।
इन सभी घटनाओं के बाद मंदिर को किसी तरह छति पहुंचाये बिना एवं मूल मंदिर को बरकरार रखने के साथ-साथ मंदिर के चारों तरफ गुम्बदों की मदद से भय मंदिर का निर्माण हो रहा है। इस मंदिर के गर्भगृह में माता के साथ भगवान शिव की मूर्ति भी स्थापित है।
पुरातत्व विभाग ने माता के प्रतिमा को तकरीबन ७०० वर्षों पुराना बताया है। वहां के स्थानीय लोगों और मंदिर के पुजारियों का मानना है कि यह मंदिर महाभारत काल से है। माना जाता है किे पांडवों ने अग्निवेशवाद(निर्बाध निर्वासन) की अवधि के दौरान यहां पर आकर पूजन-अर्चन कियें थें। इसके बारे में एक बात और जानने योग्य है कि ब्राह्मण पुजारियों के साथ-साथ, यहां पर छह जनजातीय पुजारी हैं जो पहाड़ों के रूप में जाने जाते है। जो इस मंदिर में पूजा करते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं। इसके बारे कहा जाता है कि यह एकमात्र मंदिर है जहां आदिवासी पुजारियों को देवी की पूजा करने की अनुमति है। इस मंदिर में दूर-दराज से भक्तगण अपनी मनोकामनाओं के साथ बड़ी संख्या में रोज आते है।
भक्तों के पूजन हेतू सामग्री एवं फूल-माला इत्यादि की दुकानें मंदिर परिसर में है।
मंदिर परिसर में ढोल-नगाड़ों एवं घण्टा-घड़ियाल की गुंज नृत्य रहती है। इस जगह के साथ-साथ माता का अन्य और भी मंदिर है। जैसे की :-
१. माँ दुर्गा का भव्य प्राचीन मुर्ति भगवती नाम से प्रसिद्ध काँची नदी के तट पर दिवड़ी मंदिर से १२ किमों दूर उत्तर दिशा में हाराडीह गाँव में अवस्थित है।
२. दिवड़ी मंदिर से १५ किमों उत्तर और हाराडीह से ३ किमों दूर पूरब की ओर बामलाडीह गाँव में अष्टभुजी माँ दूर्गा की प्राचीन मुर्ति प्राचीन भग्न मंदिर में अवस्थित है।
३. अपने दोनों पुत्रों सहित शिव-पार्वती आधे अंगों में नाकटी नाम से विख्यात दिवड़ी मंदिर से आधे किमों उत्तर पूर्व दिशा में बाबईकुण्डी में अवस्थित है।
४. दिवड़ी मंदिर से ३ किमों दूर पूरब की ओर एनएच-३३ के किनारे ईवाडीह में भुवन भास्कर भगवान सूर्य की सुन्दर प्राचीन मुर्ति अवस्थ्ति है।
५. चमत्कारिक शक्ति से परिपूर्ण सु-दर्शन शिवलिंग, दिवड़ी मंदिर से २ किमों दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में करकारी नदी के सुरम्य तट पर रामगढ़ में अवस्थित हैं, जो भक्तों द्वारा अर्पित किए गए दुग्ध का साक्षात पान करते है।
६. पद्मकरा, वरदृहस्ता, भगवान विष्णु का द्विभुज धारी मनोहर प्राचीन मुर्ति, दिवड़ी मंदिर से पूरब की ओर लगभग १२ किमों दूर भुईयाँडीह से २.५ किमों उत्तर करकरी नदी के किनारे पानला गाँव के सामने अवस्थित है।
७. एनएच-३३ पर दिवड़ी मंदिर से १६ किमों दूर टिकर मोड़ से दक्षिण १ किमों बड़डीह गाँव के सरना स्थल पर माँ दुर्गा का अष्टभुजी प्राचीन मुर्ति अवस्थित है।
८. दिवड़ी मंदिर से लगभग ६५ किमों दुर सिंहभूम के केरा में माँ दुर्गा चतुर्भुजी प्राचीन मुर्ति अत्याधुनिक भव्य मंदिर में अवस्थित है। यहां माँ दुर्गा, ‘केरा माँ’ के नाम से प्रसिद्ध है।
९. माँ दुर्गा का कात्यायनी रूप त्रिशुलधारिणी वरदहस्ता रूप दिवड़ी मंदिर से दक्षिण की ओर लगभग १०किमों दूर सरना स्थल के नीचे लुंगटू गाँव में अवस्थित है।
१०. माँ दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी रूप हाराडीह के उसी स्थान पर अवस्थित है जहाँ माँ भगवती अवस्थित है। पहुंचने का मार्ग- दिवड़ी मंदिर से एनएच-३३ द्वारा पश्चिम की ओर सलगाडीह तक ५ किमों, सलगाडीह से नहर मार्ग द्वारा नवाडीह तक १० किमों नवाडीह उत्तर कच्चे मार्ग द्वारा हाराडीह मंदिर ३.५ किमों। जहाँ पर जाकर भक्तगण अपनी मनोकामनाएं पूरी करते है।
इसके साथ आकर्षणों में दशम फॉल जो कि इस मंदिर से २० किमों की दूरी पर है। इसके अलावा जोनह फॉल, पहाड़ी मंदिर और हुदरू फॉल एक दूसरे से पास-पास में है। दिउड़ी मंदिर पहुंचने के लिए वायुमार्ग, रेलमार्ग और रोडमार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
बता दें कि यह मंदिर और भी प्रसिद्ध तब हो गई जब इस मंदिर के साथ भारत के क्रिकेट टीम कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का नाम आया।
वहां के पुजारियों ने बताया कि महेन्द्र सिंह धोनी अपनी पत्नी संग इस मंदिर में अक्सर दर्शन करने हेतू आया करते है। अपने हर बड़े मैच के विजय होने की कामना के साथ यहां आते है एवं मैच में विजय हासिल कर के माता का धन्यवाद व्यक्त करने अपने परिवार संग दुबारा भी आते है। पंड़ितों ने यह भी बताया कि इस मंदिर में भारतीय क्रिकेट टीम के भूतपूर्व कप्तान सौरभ गागुंली भी अपने कप्तानी के दौरान इस मंदिर में माता के दर्शन हेतू आ चुके है।