उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है केदारनाथ धाम। हिमालय की चोटी और बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच भगवान शिव के इस मंदिर के दर्शन के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है।
HIGHLIGHTS
- केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
- उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक हैं।
- वैज्ञानिकों के अनुसार केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था।
- साल में छह महीने केदारनाथ धाम बंद रहता है और छह महीने इस मंदिर के कपाट दर्शन के लिए खोले जाते हैं।
- साल 2013 में आई जल प्रलय ने केदारनाथ में भारी तबाही मचाई थी
देहरादून, जागरण डिजिटल डेस्क। देवभूमि उत्तराखंड अपने विख्यात मंदिरों के लिए जाना जाता है। चार धाम से लेकर पंच प्रयाग तक, सभी उत्तराखंड में ही स्थित हैं। ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड में देवों का वास होता है। इन सभी मंदिरों में से एक मंदिर ऐसा है जो इस राज्य की पहचान भी बन चुका है। नाम है केदारनाथ धाम। बाबा केदार का ये मंदिर उत्तराखंड के उन धार्मिक स्थलों में से एक हैं जहां जाने का सपना हर एक भारतीय का होता है। अगर आप भगवान भोलेनाथ के भक्त हैं तो केदारनाथ धाम के दर्शन अवश्य करें। केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
केदारनाथ धाम हिंदुओं का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक हैं। केदारनाथ धाम पहुंचने का रास्ता जितना कठिन है, उतना ही मनमोहक भी। प्राकृतिक झरने और पहाड़ों की खूबसूरती के साथ-साथ बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच स्थित केदारनाथ धाम शिव भक्तों के लिए सबसे पावन स्थान है। केदारनाथ धाम के कपाट एक निश्चित समय के ही लिए खुलते हैं और बाबा केदार के दर्शनों के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। वैसे तो केदारनाथ धाम के बारे में आप बहुत कुछ जानते होंगे, लेकिन हम आपको बताएंगे केदारनाथ धाम के निर्माण से लेकर उसके 400 साल तक बर्फ के नीचे ढके होने तक के रहस्य के बारे में….
कब हुआ मंदिर का निर्माण
केदारनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर कई सारे कयास हैं। केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12- 13वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली राजा भोज की स्तुति के अनुसार ये मंदिर उनका बनवाया हुआ है जो 1076-1099 काल में थे। एक मान्यता अनुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया।
बताया जाता है कि मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनवाया था। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है।कुछ मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है, लेकिन किसने किया है इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है।
पौराणिक कथाएं क्या कहती हैं..
किवदंतियों के अनुसार जब महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर अपने भाइयों और सगे-सम्बन्धियों की हत्या का दोष लग गया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव से क्षमा मांगने का सुझाव दिया था। लेकिन शिव जी पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पांचो की नजर में न आने के लिए बैल यानि नंदी का रूप धारण कर लिया था और पहाड़ों में मौजूद मवेशियों में छिप गए थे। गदाधारी भीम ने उन्हें देखते ही पहचान लिया और शिव जी का यह भेद सबके सामने आ गया। लेकिन जब भोलेनाथ ने वहां से भी किसी अन्य स्थान पर जाने की कोशिश की तब भीम ने उन्हें रोक लिया और शिव जी को उन्हें क्षमा करना पड़ा।
इसके अलावा एक पौराणिक कथा भी है। जिसके अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान प्रदान किया। इस वरदान स्वरुप ही भगवान शिव का ये मंदिर केदारनाथ आज भी यहां मौजूद हैं और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं।
मंदिर की वास्तुकला
केदारनाथ मंदिर अत्यंत सुंदर है। बर्फ के बीच में विराजमान भगवान शिव का ये मंदिर अद्भुत लगता है। वास्तुकला की बात करें तो केदारनाथ मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है । इसकी दीवारें 12 फीट मोटी है और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। यह हैरतअंगेज है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। जहां पर चढ़ कर जाना ही इतना मुश्किल है, वहां इतना विशालकाया और सुंदर मंदिर बनवाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। जानकारों का मानना है कि पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचों बीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।
मन्दिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला- गर्भगृह , दूसरा- मध्य भाग और तीसरा- सभा मण्डप। गर्भगृह के मध्य में भगवान श्री केदारेश्वर जी का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। केदारनाथ के चारों तरफ प्राकृतिक सुंदरता के नजारे देखने को मिलते हैं। यहां एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र “मंदाकिनी नदी” का एकमात्र जल संग्रहण क्षेत्र है।
400 साल बर्फ के भीतर दबा था केदारनाथ धाम?
वैज्ञानिकों के अनुसार केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था। बावजूद इसके मंदिर सुरक्षित बचा रहा। वैज्ञानिकों का मानना है कि 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग (Little Ice Age) आया था, जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था। इसी दौरान भोलेनाथ का निवास वाला ये मंदिर भी बर्फ के अंदर दब गया था। मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिकों के दावे भी लोगों को आश्चर्यचकित करते हैं।
छह महीने तक बर्फ से ढके रहते है बाबा केदार
केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए लोगों को एक तय समय का इंतजार करना पड़ता है। शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढंक जाती है। भयानक बर्फबारी के चलते यहां पर जाना कठिन है, इसलिए मंदिर छह महीने के लिए बंद किया जाता है। केदारनाथ मंदिर के खोलने और बंद करने का मुहूर्त निकाला जाता है। अभी तक यह मंदिर मुख्यत: नवम्बर महीने की 15 तारीख से पूर्व बंद हो जाता है और छह महीने बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद खुलता है।
यानी की साल में छह महीने यह मंदिर बंद रहता है और छह महीने इस मंदिर के कपाट दर्शन के लिए खोले जाते हैं। केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले इसे भव्य रूप से सजाया जाता है और सूबे के मुख्यमंत्री खुद कपाट खुलने वाले दिन वहां मौजूद होते हैं।
साल 2013 ‘जल प्रलय’ से आई तबाही
उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ के लिए साल 2013 किसी अभिशाप से कम नहीं है। कहते है प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तो उसके सामने कुछ नहीं टिकता। साल 2013 में आई प्रलय ने केदारनाथ में तबाही मचाई। इस साल इस आपदा को 10 साल पूरे हो गए। 16-17 जून 2013 को आई आपदा में हजारों मौतें हुईं थीं। यहां चौराबाड़ी झील में बादल फटने से बहकर आए भारी मलबा और विशाल बोल्डर ने तबाही ला दी थी। तब किसी ने सोचा नहीं था कि धाम में शांत बहने वाली मंदाकिनी नदी विकराल रूप लेकर तबाही मचा देगी।
नदी ने अपना नया रास्ता बनाया और फिर देखने को मिला तबाही का मंजर। केदारनाथ मंदिर को भी इस जयप्रलय ने थोड़ी बहुत क्षति पहुंचाई थी, लेकिन मंदिर जल प्रलय में भी खड़ा रहा। इस जल प्रलय में 4700 तीर्थ यात्रियों के शव बरामद हुए। जबकि पांच हजार से अधिक लापता हो गए थे। इन दस सालों में अब केदारनाथ धाम की तस्वीर बदल गई है। अब यह शिव मंदिर ज्यादा भव्य और शानदार हो गया है, वहीं भक्तों के पहुंचने की संख्या भी बढ़ गई है।
कैसे पहुंचे केदारनाथ धाम
वैसे तो समय के हिसाब से अब केदारनाथ की यात्रा सहज और सरल हो गई है। कई सुविधाएं यहां मिलने लगी हैं। अगर आप केदारनाथ जाना चाह रहे हैं, तो आपकी यात्रा की शुरुआत हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से आगे जाने के लिए आप चाहे तो टैक्सी बुक कर सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं। इसके साथ ही केदारनाथ धाम तक हवाई यात्रा की भी सुविधा है। यहां हेलीकॉप्टर से श्रद्धालु पहुंच सकते हैं।
हरिद्वार से सोनप्रयाग 235 किलोमीटर और सोनप्रयाग से गौरीकुंड 5 किलोमीटर है। आप सड़क मार्ग से किसी भी प्रकार की गाड़ी से जा सकते है। फिर यहां से शुरू होती है आपकी ट्रैकिंग। आगे का 16 किलोमीटर का रास्ता आपको पैदल ही चलना होगा। वैसे अब यहां घोड़े और पालकी की व्यवस्था भी रहती है, तो आप उससे भी जा सकते हैं। ये 16 किलोमीटर का रास्ता काफी कठिन है, क्योंकि बरसात के मौसम में लैंडस्लाइड से बड़ी दुर्घटना हो सकती है। ये 16 किलोमीटर का रास्ता जितना कठिन है, उतना ही सुंदर ही। प्रकृति के निर्माण का सबसे सुंदर नजारा आपको यहां देखने को मिलेगा।
दर्शन करने का क्या है सही समय?
वैसे सबसे महत्वपूर्ण और केदारनाथ जाने का सबसे पहला पड़ाव है रजिस्ट्रेशन। बिना रजिस्ट्रेशन के आपको यहां एंट्री नहीं मिलेगी, इसलिए पहले से रजिस्ट्रेशन करा लें। वैसे केदारनाथ मंदिर साल में सिर्फ छह महीने के लिए खुलता है। यहां जाने का सही समय आपके लिए अप्रैल, मई और जून का महीना है। इस मंदिर की अधिक ऊंचाई होने से यहां का मौसम काफी ठंडा होता है और शायद आपको बर्फबारी भी देखने को मिल जाए
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