विश्वभर में अध्यात्म का परचम लहराया था अध्यात्मिक गुरू महेश योगी जी ने
उनके द्वारा राम नाम की मुद्रा विश्व में कहाँ पर करेन्सी के रूप में उपयोग में लाया जाता है?
उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे।
विश्वभर में भावातीत ध्यान के सिद्धांत का प्रचार प्रसार करने वाले महर्षि महेश योगी जी ५ फरवरी २००८ को व्लाड्राप में चिरसमाधि में चले गये। आज उनके विचारों को उनके अनुयायी आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। एक समय था जब योगी जी के आध्यात्म का पश्चिमी देशों में परचम लहराता था। आज योगी जी के कई स्कूल और अन्य संस्थाएं चलती हैं। उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे।
बता दें कि उनका जन्म १२ जनवरी १९१८ को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ था। अब वहां एक आश्रम है। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की। उन्होंने तेरह वर्ष तक ज्योतिमठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सान्ध्यि में शिक्षा ग्रहण किया। महर्षि महेश योगी जी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में १० हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद १९५५ में उन्होंने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ किया। १९५७ में उन्होंने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी जी द्वारा चलाए गए आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप बीटल्स ने १९६८ में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरूजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ।
उन्होंने कई देशों की यात्रा की और खुद विकसित की गई भावातीत ध्यान योग पद्धति से दुनिया को लाभान्वित किया। उन्होंने भारत के अलावा अमेरिका, मेक्सिको, ब्रिटेन और चीन सहित अनेक देशों में कई उपक्रम चलाए और स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय खोले। दुनिया का प्रसिद्ध संगीत समूह बीटल्स भी महर्षि जी के संदेशों की ओर खिंचा आया और उन्हें पूरे विश्व में अपार ख्याति मिली। १९९० के बाद से महर्षि जी ने अपनी सारी गतिविधियों को नीदरलैंड के व्लाड्राप से संचालित करना शुरू किया। इसी आश्रम में ११ जनवरी २००८ को वह सारे कामकाज से अवकाश लेकर मौन में चले गए और उन्होंने अपने गुरूदेव के प्रति संदेश लिखा। ‘‘गुरूदेव के चरणों में रहना मेरे लिए सुखद था जिससे कि मैं उनके प्रकाश का लाभ उठाकर आसपास के माहौल में इसे पहुंचा सकूं’’।
व्लाड्राप में ही ५ फरवरी २००८ को महर्षि जी चिरसमाधि में चले गये। उनका अंतिम संस्कार इलाहाबाद स्थित संगम के तट पर किया गया। महर्षि महेश योगि जी का भावांतीत ध्यान ७० के दशक में विश्व प्रसिद्ध हुआ।
राम मुद्रा-
महर्षि महेश योगी जी ने एक मुद्रा की स्थापना भी की थी। उनकी मुद्रा राम को नीदरलैंड में कानूनी मान्यता प्राप्त है। राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले
एक , पाँच और दस के नोट है। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वल्र्ड पीस ने अक्टूबर २००२ में जारी किया था। डच सेंट्रल बैंक के अनुसार राम का उपयोग कानून का उल्लंघन नहीं है। बैंक के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि इसके सीमित उपयोग की अनुमति ही दी गई है। अमरीकी राज्य आइवा के महर्षि वैदिक सिटी में भी राम का प्रचलन है। वैसे ३५ अमरीकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम के बदले दस यूरो मिल सकते हैं। डच सेंट्रल बैंक के प्रवक्ता का कहना है कि इस वक्त कोई एक लाख राम नोट चल रहे हैं।
समाधि स्मारक-
इनका समाधि स्मारक इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम की तीन पवित्र नदियाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के बने संगम के पास बांध रोड पर स्थित है। इस स्मारक को इस प्रकार से बनाया गया है कि इसे इलाहाबाद के शहर से हर तरफ से देखा जा सकता है। यह स्मारक बनाने का प्लान महर्षि महेश योगी जी के समाधि लेने के तुरन्त बाद घोषणा कर दी गयी थी। यह स्मारक अपने आप में एक अद्भूद द्रिष्य संजोया हुआ है। इसको बनाने में किसी तरह का लोहा का इस्तेमाल नहीं किया गया।
इसके स्थान पर पत्थर से बने बीम और इंटरलॉक्गिं पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। बाहर की तरफ पीला जैशलमेर पत्थर का निमार्ण में इस्तेमाल किया गया है। परन्तू भितर की तरफ, छत, पीलरें और फर्स सौ प्रतिशत सफैद मकराना मार्बल पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसके चारों तरफ सौन्दर्य से पूर्ण बगीचे है।
समारक में बने समाधि के ऊपर लगे झूमर के समाधि पर गिर जाने से हुए छतिग्रस्त स्थान से समाधि को हटा कर उस स्थान को फिर से पुन:निर्माण किया जा रहा है।
उनकी याद में- महर्षि महेश योगी विरासत में हमारे लिए इतना कुछ छोड़ गए हैं कि यदि हम उनके बताए मार्ग पर चलें तो न सिर्फ हमारा जीवन सुखमय होगा, बल्कि पूरा विश्व शांति और समृद्धि से परिपूर्ण होगा। जहां विज्ञान खत्म हो जाता है, वहां से अध्यात्म शुरू होता है। उन्होंने पूरे विश्व में वैदिक ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। वैदिक ज्ञान से ही भारत विश्वगुरू बन सकता है। उन्होंने वैदिक ध्यान की पराकाष्ठा भावातीत ध्यान की स्थापना पूरे विश्व में की।