शिव का एक ऐसा धाम जहाँ चढ़ती है झाडू, आइये जानते है!
भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव है अंत और शिव ही है आरम्भ। शिव है सनातन धर्म। शिव से ही अर्थ, काम और मोक्ष है। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्वमान है। इसी क्रम में आज हम आप को एक ऐसा मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जिसको सूनने के बाद आपको विश्वास नहीं होगा। कि क्या शिव को बेलपत्र, गंगाजल, दुध और धतूरे के साथ-साथ झाडू चढ़ाये जाने पर शिव सभी कष्टों से भुक्तभोगियों को छुटकारा दिला देते है। पर यह सच है कि एक ऐसा मंदिर है जहाँ भक्तगण शिव को प्रिय वस्तु चढ़ाने के साथ झाडू भी चढ़ाते है। भक्तों का ऐसा मानना है कि अगर वो शिवलिंग पर सीखीं वाली झाडू चढ़ाते है तो उनके सालों से ग्रसित चर्म रोग से मुक्ति मिल जाती है। उनके इस विश्वास पर भोलेनाथ भक्तों की यह मनोकामनाएं भी पूर्ण करते है।
कहाँ है यह मंदिर-
मुरादाबाद जिले के बीहाजोई गांव के प्राचीन शिवपातालेश्वर मंदिर है जहाँ भक्त अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए सीखों वाली झाडू चढ़ाते है। वैसे तो उनको प्रसन्न करने के लिए भक्तगण बेलपत्र, दुध, भांग, धतूरा एवं मदार के फूल चढ़ाते है। लेकिन शिव को मन से एक लोटा जल चढ़ा दे तो उसमें भी भोलेनाथ खुश हो जाते है। इस मंदिर की एक और विशेष्ता है कि इस मंदिर में शिवलिंग पाताल से निकला था। इसका कोई पोख्ता प्रमाण नहीं है पर वहाँ पर दर्शन करने आ रहे लोगों का और वहाँ के पुजारियों की मानना है। इसी कारण इस मंदिर का नाम शिवपातालेश्वर मंदिर पड़ा।
१५० साल पुराना पतालेश्वेर मंदिर में झाडू चढ़ाने के पीछे एक कथा प्रचलित है-
इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। भक्त इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की शरण में अपने कष्टों के निवारण के लिए आते है। यहां झाडू चढ़ाने के पीछे एक कथा है जिसमें सदियों पहले एक व्यापारी भिखारीदास काफी धनवान होने के बावजूद चर्म रोग से पीड़ित था। कई बार कई वैद्य से अपने इस रोग के इलाज भी करवाई पर रोग सही नहीं हो सका। ऐसे ही एक और वैद्य के पास व्यापारी अपने इस चर्म रोग के इलाज हेतू जा रहा था कि तभी रास्ते में उसे जोरो की प्यास लगी तो वे पास दिख रहे एक आश्रम में पानी पीने के लिए चला गया। अपनी प्यास शांत करने के बाद जाते-जाते व्यापारी का हाथ आश्रम में रखे एक झाडू से टकरा गया। और वह झाडू पास के शिवलिंग पर जा गिरा। जिसके कारण उस व्यापारी को बरसों पुराना चर्म रोग से पूरे तरह से छुटकारा मिल गया। यह देख उस व्यापारी का होस का ठिकाना न रहा। वह उस आश्रम में रह रहे संत को खूब सारा धन देने की अपनी इच्छा जाहिर की। पर उसके इस प्रसताव को संत ने नामंजूर कर दिया। और धन के बदले संत ने व्यापारी से इस स्थान पर भगवान शिव का एक मंदिर बनवाने को कहा। जिसपर उस व्यापारी ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करवाया दिया। और तभी से इस पतालेश्वेर मंदिर में सीखी वाली झाडू चढ़ाने के साथ भक्तों का ताता बढ़ गया। खासकर श्रावण मास और शिवरात्री में भक्तों की यहां भिड़ लगी रहती है।
बता दें कि एक लम्बे अरसे से मंदिर में सेवा कर रहे यहां के पुजारी का कहना है कि मंदिर तो १५० साल पुराना है। लेकिन मंदिर में मौजूद शिवलिंग कितना पुराना है ये अभी भी रहस्य बना हुआ है। बहराल मंदिर में झाडू अर्पित करने से भक्तों को सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है एवं भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं भी पूरी करते है।