भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था। इसी लिए हिन्दू धर्म में गणेश उत्सव का विशेष महत्व होता है। इनकी उत्पत्ति शिव पार्वती ने देवों के लिये विघ्नहर्ता तथा राक्षसों के लिये विघ्नकर्ता के रूप में किये थें। इनकी दो ऋद्धि व सिद्धि नामक पत्नियां हैं। इनका वाहन चूहा है। और इनको बुद्धि का देवता माना जाता हैं। इस बार २५ अगस्त २०१७ को यह पर्व मनाया जायेगा।
देश की आजादी में इस त्यौहार का अनूठा योगदान-
इस पर्व को त्यौहार का रूप देने वाले महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी महाराज ही थे। उस वक्त इस त्यौहार को केवल लोग अपनें घरों में मात्र एक दिन ही मनाया करते थें। मुगलों और मराठियों का शासन को अपने अधिकार में लिये अंगे्रजों से भारत को अजादी दिलाने हेतू बाल गंगाधर तिलक ने इस एक दिवसीय त्यौहार को सन् १८९३ में अंगे्रजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए १० दिनों का बहुत बड़ा सार्वजनिक आयोजन बनाया। हिन्दू का धार्मिक त्यौहार होने के कारण अंगे्रजों ने इस त्यौहार का विरोध नहीं कर सके। जिससे इस त्यौहार के १० दिनों के दौरान स्वतंत्रता सेनानी देश को स्वतंत्र कराने हेतू अपने रणनिति बनाया करते थें। इस प्रकार इस त्यौहार का भारत देश को आजादी दिलाने में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा।
१० दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार के पीछे प्रचलित है २ कथा-
पहली कथा भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने हेतू स्वतंत्रता सेनानियों को रणनिति बनाने में १० दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव रहा। और इसके पीछे दूसरी कथा महाभारत काल से भी है। जिसमें वेद व्यास जी ने महाभारत कथा लिखने के लिए श्रीगणेश जी का आवाहन किया था। इस दौरान वेद व्यास जी ने गणेश जी को महाभारत कथा लिखने के लिए गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्थी तक लगातार १० दिनों तक कथा सुनाई थी। जिससे इस कथा को भी १० दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के पिछे भी एक कड़ी मानी जाती हैं।
इस बार १० दिनों के स्थान पर ११ दिन तक मनाया जायेगा यह त्यौहार-
शुभ कार्य हेतू हिन्दू धर्म में किसी तरह की पूजा एवं किसी भी देवी-देवताओं में सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती हैं। इस बार २५ अगस्त को पड़ने वाला गणेशोत्सव १० दिनों के बजाय ११ दिनों तक चलेगा। क्योंकि इस बार २ दशमी तिथि पड़ रही हैं क्योंकि ३१ अगस्त और १ सितंबर को दोनो दिन ही दशमी तिथि रहेगी।
इस त्यौहार में भक्तगण अपने इष्ट को प्रसन्न करने हेतू कई तरह की मिष्ठान चढ़ाते है। इस मिष्ठान में मोदक का प्रथम स्थान रहता है क्योंकि मोदक भगवान श्रीगणेश को अति प्रिय है। इसके बनने में चावल के आटे, गुड़ और नारियल का उपयोग किया जाता हैं। एक बात ध्यान देने की है कि इनके पूजन का समय हमेशा दोपहर का ही माना गया है। क्योंकि माना जाता है कि भगवान श्रीगणेश का जन्म दोपहर में हुआ था। इस कारण श्रीगणेश का पूजन दोपहर में किया जाता हैं।
गणपति विसर्जन परम्परा-
मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति जल से ही हुई हैं। और जल बुद्धि का प्रतीक है तथा भगवान गणपति, बुद्धि के अधिपति है। जब महाभारत की कथा लिखना था तब वेद व्यास जी ने श्रीगणेश जी को इस कथा के लिए चुना। जिसके बाद श्रीगणेश जी को अपनी आखों को मुंदे हुए वेद व्यास जी ने लगातार कथा १० दिनों तक सुनाई जिससे श्रीगणेश जी का तन आग की भांति तपने लगा। जब वेद व्यास ने अपनी आंखो को खोला तो श्रीगणेश जी के इस कष्ट को खत्म करने हेतू पास के एक कुंड में श्रीगणेश जी को ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ। तभी से श्रीगणेश जी की प्रतिमा को १० दिनों तक अपने पास रखें भक्तगण और इस दौरान उनको अपनी याचना सूनाने से उनके शरीर का तापमान बढ़ने की बात सोचकर भक्तगण उनके प्रतिमाओं को बहते हुए जल, तालाब सा समुद्र में विसर्जित करके उन्हें फिर से शीतल प्रदान करने का प्रयास करते हैं।