चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी 5 अप्रैल, शुक्रवार को है। इस दिन पापमोचनी एकादशी व्रत किया जाएगा। इस व्रत के बारे में लोमश ऋषि ने राजा मांधाता को बताया था। फिर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसका महत्व समझाया। कथा के मुताबिक इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और हजार गायों का दान करने जितना पुण्य मिलता है।इस एकादशी व्रत में विधि-विधान से भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा होती है। इस दिन भगवान कृष्ण का अभिषेक और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना फलदायी होता है।
दशमी तिथि की रात से शुरू हो जाते हैं इस व्रत के नियम
ये व्रत करने वाले लोगों को दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। इसके बाद शुद्ध मन से भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। दशमी तिथि की रात में ही मन में ये संकल्प लेकर सोना चाहिए कि अगले दिन पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा और एकादशी का व्रत करेंगे। अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद संकल्प लेकर व्रत शुरू करना चाहिए।
भगवान विष्णु की पूजा विधि
सबसे पहले भगवान गौरी-गणेश की पूजा कर लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जपते हुए पूरी पूजा करें। भगवान विष्णु को शुद्ध जल, दूध-दही, पंचामृत से स्नान करवा कर वस्त्र चढ़ाएं।मौली, चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, फूल, माला, जनेऊ और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें। पीले रंग की मिठाई का भोग लगाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी करें। पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।
एकादशी से जुड़ी कथा और महत्व
मान्यता है कि पापमोचनी एकादशी व्रत को करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं। इस व्रत से तकलीफ भी दूर होती हैं। जाने-अनजाने में किए पाप खत्म होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।पौराणिक कथा के मुताबिक एक समय मेधावी नामक ऋषि की तपस्या भंग करने के कारण मञ्जुघोषा नामक अप्सरा को पिशाचिनी बनने का श्राप मिला था, लेकिन बाद में मञ्जुघोषा के पश्चाताप के निवारण के लिए ऋषि ने उसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी व्रत करने का उपाय बताया था। उस एकादशी का उपवास करने से मञ्जुघोषा पिशाचिनी की देह से मुक्त हुई थी।
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