घर पर श्राद्ध करने की सम्पूर्ण विधि
श्राद् करने की विधि-
सुबह स्नान कर, श्राद्धकर्ता अपने पितरों का श्राद्ध धोती पहनकर करें(पिंडदान करने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि शरीर पर सिले हुए वस्त्र धारण नहीं करें। श्राद्धकर्ता को स्नान करके पवित्र होकर धुली हुई सफेद या पीले धोती धारण करना चाहिए), देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें। गंगाजल, कुश और तिल मुख्य रूप से अनिवार्य हैं।
पिंडदान-
‘पिंड’ शब्द का अर्थ होता है ‘किसी वस्तु का गोलाकार रूप’। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। मृतक कर्म के संदर्भ में ये दोनों ही अर्थ संगत होते हैं, अर्थात इसमें मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ, जिसमें जौ या चावल के आटे को गूँथकर अथवा पके हुए चावलों को मसलकर तैयार किया गया गोलाकृतिक ‘पिंड’ होता है।
तिल और कुश-
भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश की उत्पत्ति हुई हैं। तुलसीदल भी शामिल करें। अगर स्वर्य श्राद्ध कर्म करना हो, तो आसन को जल से पवित्र करें। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए।
पंडित के स्थान पर सूर्य को उत्तम माना गया-
भगवान सूर्य को जगत का पंडित कहा गया हैं। पंडित का तात्पर्य है परम ब्रह्मज्ञानी और सूर्य से बड़ा ज्ञानी किसी और को नहीं माना गया है। इसलिए सूर्य को पंडित की संज्ञा दी गई हैं। हाथ में जौ, तिल लेकर जल के साथ पितृ आत्माओं का नाम लेकर भगवान सूर्य को अर्पित करें। कम-से-कम ग्यारह बार प्रत्येक पितृ आत्मा के लिए अंजलि प्रदान करें। जिसके बाद श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र हैं।
मंत्र:
देवताभ्य:पितृभ्यश्च महायोगिश्य एव च।
नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।।
पितृ स्त्रोत को पढ़े।
पित्र स्तोत्र
‘‘रूचि बोले- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मै हाथ जोड़कर प्रणाम करना हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मै हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय हैं।
जोे पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते है तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों।’’
श्राद्ध के समय पितृ देवता का ध्यान करें और ‘ऊं केशवाये नम:’, ऊं माधवाये नम:’ करते हुए तर्पण(तर्पण कर्म- श्राद्ध में तिल और कुशा सहित जल(तांबा एवं कांसे का पात्र) हाथ में लेकर पितृ तीर्थ यानी अंगूठे की ओर से धरती में छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती हैं। तर्पण कर्म करते वक्त अंगूठे से ही पिंड पर जलांजलि दी जाती है। कहा गया है कि अंगूठे के जरिए दी गई जलांजलि सीधे पितरों तक पहुंचती हैं) करें।
संकल्प-
दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक ब्राह्मण को नमक का दान करें।
ब्राह्मण भोज जरूरी-
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। यदि ब्राह्मण भोजन न करा सकें, तो भोजन का सामान ब्राह्मण को भेंट करने से भी संकल्प हो जाता हैं।
जिसके बाद अंत में प्रार्थना करें कि हे पितृ देवता! आप हमारे घर-परिवार की रक्षा करें। हमारा कल्याण करें। अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा करें।
श्राद्ध में ये जरूर करें-
इस दिन पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।
१. गाय के लिए पत्ते पर ‘गोभ्ये नम:’ मंत्र पढ़कर भोजन सामग्री निकालें।
२. कुत्ते के लिए पत्ते पर ‘द्वौ श्वानौ नम:’ मंत्र पढ़कर भोजन सामग्री निकालें।
३. कौऐ के लिए पत्ते पर ‘वायसेभ्यो नम:’ मंत्र पढ़कर भोजन सामग्री निकालें।
४. देवताओं के लिए पत्ते पर ‘देवादिभ्यो नम:’ मंत्र पढ़कर भोजन सामग्री निकालें।
५. चींटियों के लिए पत्ते पर ‘पिपीलिकादिभयो नम:’ मंत्र पढ़कर भोजन सामग्री निकालें।
जिसके बाद कण्डी को जला कर गुड़ आदि के द्वारा देव भोजन अर्पित करें और पिण्ड दान किया गया सारी वस्तुओं को गंगा जल में प्रवाहित करें। पंचबलि को पांचों स्थानों पर बाटें। कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से यमराज प्रसन्न होते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि-यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूँ। वे इस बलि(भोजन) को ग्रहण करें। इसे कुक्करबलि कहते हैं। ब्राह्मण को नमक, चावल और दाल दान करें। जिसके बाद घर आकर भोजन ग्रहण करें। तब तक सभी उपवास रखें। इस दौरान रंगौली को बना लें।
श्राद्ध करने में परहेज-
जब तक श्राद्ध कर्म न हो, कुछ ग्रहण न करें। श्राद्ध तिथि वाले दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने और स्त्री प्रसंग से परहेज करें। श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज-लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, महुआ, चना ये सब वस्तुएं वर्जित हैं। तर्पण में लोहा, मिट्टी के बर्तन तथा केले के पत्तों का प्रयोग न करेंं। सोना, चांदी, तांबा एवं कांसे का पात्र सही है।