कावड़ यात्रा के दौरान वर्जित है ये कार्य
चतुर्मास में जब भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं, तब शिव रूद्र नहीं, वरन भोले बाबा बनकर आते हैं। श्रावण की बात करें तो श्रावण महीना भगवान शिव की भक्ति का महीना है। इस महीने में विभिन्न माध्यमों से भगवान शंकर को प्रसन्न किया जाता है। सावन के महीने में भगवान शंकर के जलाभिषेक का भी विशेष महत्व है। जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान भगवान शिव ने किया था। उन्होेंने विष को अपने कंठ पर रोक लिया था। जिसके बाद उनका शरीर जलने लगा। इसके बाद इंद्र संग सारे देवताओं ने उनके ऊपर जल चढ़ाया जिससे शिव जी का शरीर शीतल हो गया। इसलिए शिव जी को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण शिवलिंग पर जल चढ़ाते है और इससे ही शुरू हुआ कांवर यात्रा का सिलसिला। कांवड़ यात्रा धर्म और अर्पण का प्रतीक है। श्रावण महीने में आपने कावड़ यात्रियों या कहें कावड़ियों को तो देखा ही होगा जो इस पवित्र महीने में कंधे पर कांवर लिये गेरूआ वस्त्र पहनते हैं और नंगे पांव चलते हुए देवाधिदेव शिव को चढ़ाने के लिए पवित्र नदियों का जल लाते है। कांवर यात्रा में उम्र की कोई सीमा नहीं होती है। इसमें केवल नजर आती है आस्था और विश्वास। बच्चे, युवा, अधेड़ व बूढ़े सभी रहते हैं कांवर यात्रा में।
कावड़ यात्रा में किस बातों का ध्यान रखना चाहिए?-
१.कावड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करते रहना चाहिए।
२.चमड़े से बनी वस्तु का स्पर्श भी कावड़ यात्रियों के लिए वर्जित है।
३.तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य शृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता।
४.कावड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कावड़ रखी हो उसके आगे बगैर कावड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती है।
५.कावड़ यात्रियों के लिए चारपाई पर बैठना एवं किसी भी वाहन पर चढ़ना भी मना है।
६.बिना स्नान किए कावड़ यात्री कावड़ को नहीं छू सकते।
७.इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मंदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता।
८.रास्ते में किसी वृक्ष या पौधे के नीचे कावड़ रखने की भी मनाही है।
९.कावड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है।
१०.कावड़ यात्रा के दौरान किसी के प्रति किसी तरह का द्वेष मन में कभी ना लाये एवं किसी का बुरा न सोचे और न किसी का बुरा करें।
इन सभी का बातों का पालन कर कावड़ यात्री अपनी यात्रा पूरी करते हैं। इन नियमों का पालन करने से मन में संकल्प शक्ति का जन्म होता है। कावड़ का मूल शब्द ‘‘कावर’’ है जिसका सीधा अर्थ कंधे से है। शिव भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुुंचते हैं। कावड़ियों के सैलाब में रंग-बिरंगी कावड़े देखते ही बनती हैं।