क्या कभी पितृदोष लग सकता है सिर्फ अगरबत्ती जलाने से?
क्या हम सभी अपनी इन गलतियों से पितृदोष में फंसे हुए है?
कैसे सिर्फ एक मात्र अगरबत्ती जलाने से हम पितृदोष के चक्रव्युह में फंस जाते है?
हिन्दू धर्म के ३३ करोड़ देवी-देवताओं वाले इस धर्म में सभी इष्ट देवों को एक विशिष्ट पूजन से प्रसन्न करने की बात हमारे जहन में रही है कि हमेशा सभी सामग्री के साथ अगरबत्ती का होना। आजकल लोगों को पितृदोष बहुुत होते है इसका एक कारण अगरबत्ती का जलना भी है। हिन्दू धर्म परंपरा में घर में पूजन-अर्चन करने का महत्व माना गया है। इससे हमारें घरों में नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवेश बाधित होता है और घर में ईश्वर का आर्शीवाद बना रहता है। पर क्या इसके स्थान पर कुछ और घर में प्रवेश कर ले और अपना स्थिर स्थान बना ले जिससे आपके जीवन में अंधकार, हानी और दु:खों का अंबार लग जाये तो क्या आप ऐसा होने देंगे। पर हमारे द्वारा किया गया रोजाना पूजन-अर्चन से हमारे पितृ अपना लोक छोड़कर हमें और हमारें घरों में स्थान ग्रहण कर निवास करने लगते है जिससे हमारा जीवन खुशियों के स्थान पर दु:खों से भर जाता है। वे खुद दुखी होते है और हमें भी आर्शीवाद के स्थान पर श्राप दे देते है। हमारे द्वारा पूर्व में किया गया अपनों का अंतिम संस्कार एवं पितृ तर्पण पूर्ण रूप से विफल हो जाता है। जिसका बहुत बड़ा कारण है, खुद के द्वारा और अपने कुल गुरूओं या पंडितों के द्वारा बताया गया अपने पूजन विधान में अगरबत्ती का सामिल करना। शास्त्रों में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता। शायद इसका एक कारण हो सकता है कि इसे बनाने में मुख्य रूप से बांस का प्रयोग होना। शास्त्रों में बांस की लकड़ी का जलाना वर्जित माना गया है। फिर भी लोग अगरबत्ती का अपने पूजन विधान में खुब जलाते हैै। जो की बांस की बनी होती है। भला ऐसे में भगवान खुस कैसे होंगे? बल्कि इसके असफल परिणाम से हम पितृदोष के जाल में फंस जाते है। क्योंकि अगरबत्ती जलाने से पितृदोष लगता है।
बता दें कि हमारें हिन्दू धर्म में विवाह में भी बांस का सामान बेटी के कन्यादान में दिया जाता है, जिसका अर्थ होता है कि बांस अर्थात् ‘वंश’, जिससे बेटी जिस घर में जाए उस घर का वंश बढ़ता रहे। लेकिन लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बांस की लकड़ियों से बनी अगरबत्ती का धड़ल्ले से उपयोग करते है, जो अनुचित है इसके बजाए गाय के गोबर में गूगल, घी, चन्दन, कपूर आदि मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना कर सूखा कर उन्हें जलाना चाहिए। इससे वातावरण भी शुद्ध होता है।
शास्त्रों में भी बांस की लकड़ी को अनुचित बताते है। इसके स्थान पर गौ माता के गोबर, घी, भीमसेनी कपूर, नीम से बनाई गौ शाला में निर्मित धूपबत्ती का ही प्रयोग सर्वोंत्तम व स्वास्थ्य वद्र्धक है। १० ग्राम घी का दीपक जलाने से एक टन वायु शुद्ध होती है। वहीं वैज्ञानिक स्तर पर सिद्ध हो गया है कि अगरबत्ती का धूंआ हमारे स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। जिसमें अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के गिलिंग्स स्कूल ऑफ ग्लोबल हेल्थ ने एक अनुसन्धान में कहा है कि अगरबत्ती के धूएं से फेफड़ों को हानि पहुंच सकती है। एवं इसको जलाने पर प्रदूषकारी गैसों का उत्सर्जन होता है, जिसमे कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल है। प्रदूषणकारी गैसोें के कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है।