क्यों वर्जित हैं एकादशी को चावल और चावल से बनी वस्तु का सेवन?
क्यों विज्ञान भी एकादशी को चावल का सेवन निषेध माना हैै?
क्यों हमारे बड़े-बुजूर्ग मना करते है इस दिन चावल को खाने से?
क्यों इस दिन चावल का सेवन मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है?
हम अपने पुराने जमाने से या अपने बड़े-बुजूर्गोंं के द्वारा यह बात सुनते चले आ रहे है कि एकादशी के दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नही खाई जाती है। लेकिन इसके पीछे सच्चाई क्या है यह नहीं जानते हैं। जब भी हम यह बात सुनते होंगे कि आज एकादशी है और आज चावल नहीं खाए जाते है, तब हमारे दिमाग में एक ही बात आती है कि ऐसा क्यौ, जानिए इसके पीछे क्या रहस्य है।
कहा जाता है कि पद्म पुराण के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतारी की पूजा विधि-विधान से की जाती है। इस दिन रखे गये व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय होते हैं। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। साथ ही इस दिन दान करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन निर्जला व्रत रखने का प्रावधान है। जो लोग इस दिन व्रत नही रख पाते है। उन लोगों को सात्विक का पालन करना चाहिए। यानी कि इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नही खाएं और असत्य का त्याग कर दें। साथ ही इस दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए।
वर्ष में कितनी होती है एकादशी-
हर वर्ष में २४ बार एकादशी होती है। परन्तू जिस वर्ष में मनमास लगता है उस वर्ष इसकी संख्या बढ़ कर कुल २६ एकादशी हो जाती है। जिसके अनुसार वर्ष में तकरीबन दो बार एकादशी आती हैं।
चावल न खाने की सलाह?
वर्ष की चौबीसों एकादशियों मे चावल न खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती हैै। धार्मिक दृष्टि से एकादशी के दिन चावल खाना, नहीं खाने योग्य पदार्थ खाने का फल प्रदान करता हैै।
क्या है इसके पिछे छीपी कथा?
पौराणिक कथा के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। जिसके बाद पुनः महर्षिं मेधा चावल और जौ के रूप में उत्पन्न हुए। इसलिए चावल और जौ को जीव माना गया है। कहा जाता है कि जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।
वैज्ञानिक भी चावल का सेवन व्रत में निषेध मानते है-
वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है।चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती हैं। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है।