पुण्य प्राप्ति का मास कार्तिक का महत्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार साल का ८वां महीना कार्तिक महीना के रूप में मनाया जाता हैं। इसमें कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता हैं। कार्तिक मास में नियम से स्नान, जप, तप, व्रत, ध्यान और तर्पण करने से मनुष्य को अक्षय फल की प्राप्ति होती है क्योंकि कार्तिक मास को पुण्य लाभ का मास कहा जाता है। कार्तिक पुण्यमय वस्तुओं में श्रेष्ठ पुण्यतम और पावन पदार्थों में अधिक पावन है।
स्कंदपुराण के अनुसार सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्रज्ञान नहीं और गंगा जी के समान कोई नदी नहीं और कलियुग में कार्तिेक के समान कोई मास नहीं है। मान्यता है कि हर वर्ष १५ पूर्णिमाएं मानी जाती है। लेकिन अधिकमास या मलमास आता है तो इनकी संख्या बढ़कर १६ हो जाती है। इन तिथियों को सृष्टि के आरंभ से ही बड़ी ही महत्वपूर्ण माना गया हैं। कहा जाता है कि इस दिन स्नान, व्रत व तप किया जाये तो व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वैष्णव भक्तों के अनुसार-
भगवान विष्णु को यह मास अति प्रिय है इसी कारण इस मास में किए धर्म कर्म से भगवान विष्णु को यह मास अति प्रिय है इसी कारण इस मास में किए गए धर्म कर्म से भगवान प्रसन्न होकर कृपा करते हुए मनुष्य के सभी प्रकार के दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का हरण करते हैें और उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं। इस दिन भगवान विष्णु का पहला अवतार हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। कहा जाता है कि भगवान विष्णु को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इस दिन गंगा-स्नान, दीपदान एवं अन्य दानों आदि के दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यतानुसार इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है, क्षीरसागर का दान २४ अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। इस दिन का यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। इसे दीप दीपावली भी कहा जाता हैं।
शिव भक्तों के अनुसार-
इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का संहार कर के लोगों को इसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक हैं। जिससे भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इसी के साथ इस कार्तिक महिने में पड़ने वाले पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
सिख धर्म के अनुसार-
इसी तरह सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता हैं। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरू पर्व भी कहा जाता है।