तीन नदियों से बना त्रिवेणी संगम, हमारा तीर्थराज प्रयाग
जाने कुछ खास बातें अपने तीर्थराज प्रयाग की
इलाहाबाद नामक शहर पहले प्रयाग के नाम से विश्व-विख्यात था। यह भारत का एक बहुत ही प्राचीन शहर है। जिसकों सभी तीर्थ स्थानों का राजा कहा गया है जिससे इसको हम प्रयागराज नाम से भी पहचानते है। इसके सम्बन्ध में कई दशको पूर्व वर्णन किया गया है। वैदिक काल से ही इसका बहुत बड़ा महत्व रहा है। समय-समय युग परिवर्तित होते रहें परन्तू प्रयाग का वर्चस्व निरंतर बना रहा। प्रयाग की धरती हिंदुओं के लिए पूजनीय रही है। इसको हम इलाहाबाद के नाम से भी जानते हैं। लोगों की ऐसी मान्यता हैं कि यहाँ की धरती इतनी पवित्र है कि प्रत्येक वर्ष की प्रथम महीने में होने वाले माघ मेले में पूरे माह भर सारे देवी-देवतागण यहां पर वास करते है। इस दौरान तीन महान नदियों गंगा, यमुना व सरस्वती के मिलने से बने त्रिवेणी संगम में देश-विदेश से आये करोड़ो श्रद्धालुओं स्नान कर पुर्ण अर्जित करते है। एक माह से तंबु लगा कर कल्पवासी पुण्य की डुबकी लगा के अपना जीवन की यात्रा को सफल बनाते है। माघ मेले के दौरान क्षेत्र में हर तरफ सिर्फ आस्था से रमा सिर दिखाई देता है। स्नानार्थियों ने अपने परिवार संग प्रयाग में लगे मेला क्षेत्रों के मन्दिरों में पुजन-अर्चन कर प्रसाद ग्रहण कर साथ में लाये भोजन कर मां गंगा मईया के गोद में समय बिताते है।
मुगल काल के समय सम्राट अकबर ने प्रयाग का नाम परिवर्तित कर ‘अल्लाहबाद’ अर्थात् ‘अल्लाह का घर’ रख दिया था। धीरे-धीरे प्रायोगिक रूप में इसका नाम चलन में इलाहाबाद पड़ गया। लोगों की धारणा यह हैं कि किसी भी पवित्र अनुष्ठान में यहां का पवित्र जल होना अनिवार्य होता है। त्रिवेणी संगम में स्नान करने से कई जनमों के पाप धूल जाते है एवं आत्म-शुद्धि प्राप्त होती है। यहां तक की लोगों का मानना है। कि यहां का जल इतना प्रभावशाली है कि मरणोपरांत मनुष्य की अस्थियां यहां पर विसर्जित की जाने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ती हो जाती है।
संत-महात्माओं के लिए वैदिक काल से ही प्रयाग प्रमुख तीर्थस्थली रही है। कार्तिक मास में पुरे माह भर स्नानार्थी यहां लाखों की संख्या में एक साथ स्नान करने के लिए एकत्र होते है वहीं कार्तिक पूर्णिमा को लाखों की तादार में श्रद्धालुओं एवं स्नानार्थियों का कारवां संगम में एकत्र हो पुण्य की डुबकी लगाता है।
प्रयाग की धरती भारतीय संस्कृति एवं आधुनिक सभ्यता का गौरव केन्द्र रही है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहां की धरती ने देश को अनेक महापुरूष दिये है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं पं. जवाहर लाल नेहरू आदि शीर्षस्थ नेताओं का यह शहर एक प्रमुख राजनीतिक केन्द्र रहा है।
बता दें कि पं. जवाहर लाल नेहरू के पिता पं. मोती लाल नेहरू यहां के प्रसिद्ध वकील रहे। बाद में जैसे-जैसे ये गाँधी जी के संपर्क में आए भारतीय स्वतंत्रता आदोलन के प्रति इनकी दिलचस्पी बढ़ती गई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्राचीनकाल से ही शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां से निकलने वाले छात्र आज भी देश-विदेश में अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। विश्व का अब तक का यह एकमात्र शहर है जिसने किसी देश को चार प्रधानमंत्री दिए हैं।
प्रयाग में जन्में इस सदी के महानत्म सितारे अमिताभ बच्चन आज भी इस स्थान पर गर्व करते हैं। हिंदी साहित्य के विकास में प्रयाग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह अनेक महान् कवियों एवं साहित्यकारों की कार्यस्थली रह चुकी है।
फलों में यहां का अमरूद विश्व प्रसिद्ध है। हिंदी यहां की बोल-चाल की प्रमुख भाषा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय देश के सर्वोच्च न्यायालय के पश्चात् सबसे अधिक महत्व् रखता है। पर्यटन की दृष्टि से अल्फ्रेड पार्क, संगम, कंपनी बाग एवं आनंद भवन आदि प्रमुख हैं। यहां का रेलवे स्टेशन अत्यन्त विशाल है जहां देश के सभी कोनो को रेलमार्ग द्वारा जोड़ा गया है। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई आदि सभी धर्म एवं संप्रदाय के लोग यहां पर एक साथ एवं भाईचारे संग रहते है। यहां पर प्रत्येक धर्म के लोग एक दूसरे के पर्व पर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है।
प्रयाग आज भी रातनीति की दृष्टि से प्रमुख केन्द्र है। कोई भी राजनेता इसके महत्व को अस्वीकार नहीं कर सकता है। सदियों से प्रयाग का वर्चस्व बना हुआ है और हमेशा कायम रहेगा। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इसके अतुलनीय योगदान के लिए इसके महत्व को कौन भुला सकेगा। लेकिन यह शहर भी आज प्रदूषण और गंदगी की चपेट में खो-सा गया है जिससे इसका प्राचीन गौरव खंडित हो रहा है। जहां एक तरफ शहर की आबादी तेजी से बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ लोग जहां-तहां अनियमित ढंग से बस्तियां बना कर अतिक्रमण कर रहें हैं जिसके कारण इस प्राचीन शहर का आकर्षण धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। बुद्धिजीवियों का यह शहर आज अपराधीक प्रवित्तीयों की चपेट में है। घरों से बाहर निकलने से पूर्व घरो की महिलाए कतराती है। आमजनमानस का सरकार पर से विश्वास उठ गया है। कई जगह तो कूड़े का अम्बार लगा पड़ा है। हमें और प्रशासन को मिलकर इन सारी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए ताकि तीर्थराज प्रयाग की पहचान कभी धूमिल न हो सके।