जाने भारत मे कहाँ है रहस्यमय दस मंदिर
भारतवर्ष में वैसे तो कई रहस्यमय मंदिर है जिनकी गिनती अनगिनत है। पहले के मंदिर के निर्माण समय राजाओं ने हमेशा वास्तु शास्त्र, खगोल विज्ञान और हर एक बात का ध्यान देते हुए निर्माण कार्य पूरा करवाया करते थे। कभी किसी राजन के स्वप्न मे हुए किसी देवी-देवताओं के दर्शन और मंदिर निर्माण करने की आदेश हो या मन मे उपजे मंदिर बनवाने की सोच होने पर राजाओं ने या नगर का धन सम्पन्न व्यक्ति हमेशा मंदिर का निर्माण करवाया करते थे। इसी क्रम में उस काल में कुछ ऐसे मंदिर का निर्माण हुआ जो आज भी लोगों के बिच जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। इसी श्रिखंला में हम आपके लिए कुछ दस मंदिरो के बारे में आपको रूबरू करवा रहे है।…
१ करनी माता का मंदिर-
करणी माँ की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनांए भी जुडी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पडाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि करणी देवी साक्षात माँ जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर माँ अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। माँ के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। संवत १५९५ की चैत्र शुक्ल नवमी गुरूवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। उसी समय की चैत्र शुक्ल १४ से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं।
चांदी के किवाड, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बडी परात भी देखने लायक है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, तो चूहों की धमाचौकडी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम ऊपर कर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे ब़डना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी माँ की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। कहा जाता है कि एक चूहा भी आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो आप पर देवी की कृपा हो गई समझो और यदि आपने सफेद चूहा देख लिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हुई समझो।
२ कन्याकुमारी देवी मंदिर-
यह कहानी है उस कन्या की जिसने भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए घोर तपस्या की। भगवान शिव ने विवाह करने का वरदान भी दिया और एक दिन बारात लेकर शिवजी विवाह करने निकल भी पड़े। लेकिन नारद ने शुचीन्द्रम नामक स्थान पर भगवान शिव को ऐसा उलझाया कि विवाह का मुहूर्त निकल गया। मान्यता है कि इस कन्या को कलयुग के अंत तक शिव जी से विवाह के लिए अब इंतजार करना होगा।
ऐसी मान्यता है कि कुंवारी नामक यह कन्या आदिशक्ति के अंश से उत्पन्न हुई थी। इनका जन्म वाणसुर नामक असुर का वध करने के लिए हुआ था। इस असुर ने कुंवारी कन्या के हाथों मृत्यु पाने का वरदान प्राप्त किया था।देवी का विवाह हो जाने पर वाणासुर का वध नही हो पाता इसलिए देवताओं के कहने पर नारद जी ने शिव जी और कुंवारी नामक कन्या के विवाह में बाधक बनने का काम किया। जहां देवी का विवाह होना था वह वर्तमान में कन्याकुमारी तीर्थ कहलाता है। देवी के कुंवारी रह जाने के कारण ही इस स्थान का यह नाम कन्याकुमारी पड़ा। आज भी अक्षत, तिल, रोली आदि रेत के रूप में यहाँ पर आसानी से मिल जाते हैं । कहते है यह उसी अक्षत, तिल और रोली के अंश हैं जो भगवान शिव और कुंवारी नामक कन्या के विवाह के लिए थे। विवाह नहीं होने पर विवाह सामग्री को समुद्र में फेंक दिया गया था।
यह देश में एकमात्र ऐसी जगह है जहां मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरूषों को कमर से ऊपर के क्लॉथ्स उतारने होंगे
३ मेरू रिलीजन स्पॉट, कैलाश पर्वत-
एक्सिस मुडी को ब्रह्मांड का केंद्र या दुनिया की नाभि के रूप में समझें। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं । और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहा़डों में से एक कैलाश पर्वत से संबंधित हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। ‘परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’ आप ये तो जानते होंगे की कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं पर ये नहीं जानते होंगे की वह इस दुनिया का सबसे ब़डा रहस्यमयी पर्वत है जो की माना जाता है कि अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई ६७१४ मीटर है। इसकी छोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है। हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है, जो चार धर्मों- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केंद्र हैं। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियों का उद्गम हुआ है-ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज व करनाली।
४ शनि शिंगणापुर-
एक ऐसा गांव जो केवल भगवान भरोसे चलता है। एक ऐसा गांव जो सुख एवं दुख का मालिक भगवान को ही मानता है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है शिंगणापुर गांव, जिसे शनि शिंगणापुर के नाम से जाना जाता है। यह गांव हिन्दू धर्म के विख्यात शनि देव की वजह से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि इस गांव में शनि देव का चमत्कारी मंदिर स्थित है। चमत्कारी.. यह शब्द हम इस गांव में हो रहे चमत्कारों को देखते हुए ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आपको शायद यकीन ना हो लेकिन इस गांव के किसी भी घर या दुकान में दरवाजा नहीं है। लोगों का मानना है कि इस गांव पर भगवान शनि का इतना असर है कि कोई चोर गलती से भी यहां चोरी नहीं कर सकता।
कहते हैं एक बार इस गांव में काफी बाढ़ आ गई,पानी इतना बढ़ गया की सब डूबने लगा। लोगों का कहना है कि उस बाढ़ के पानी का स्तर कम हुआ तो एक व्यक्ति ने पेड़ की झाड़ पर एक बड़ा सा पत्थर देखा। ऐसा अजीबोगरीब पत्थर देखकर लालचवश उस पत्थर को नीचे उतार कर उसे तोड़ने के लिए जैसे ही उसमें कोई नुकीली वस्तु मारी उस पत्थर में से खून बहने लगा। यह देखकर उस पत्थर को वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ। उसी रात उसी शख्स के सपने में भगवान शनि आए और बोले मै शनि देव हूं, जो पत्थर तुम्हें आज मिला उसे अपने गांव में लाओ और मुझे स्थापित करो। अगली सुबह सभी को यह बात बताई। लोगों ने उस पत्थर को लेने गये लेकिन उस पत्थर को टस से मस नही कर पाये सभी पत्थर को छोड़ कर चले गये। उसी व्यक्ति को फिर से स्वप्न में शनि देव आये। उन्होंने बताया कि मै उस स्थान से तभी हिलूंगा जब मुझे सगे मामा-भांजा के रिश्ते वाले लोग के होंगे। तभी से यह मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाएं तो उन्हें अधिक लाभ होता है।
५ सोमनाथ मंदिर-
भगवान शिव के १२ ज्योजिर्लिंग में से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है। बहुत सी प्राचीन कथाओ के आधार पर इस स्थान को बहुत पवित्र माना जाता है। सोमनाथ का अर्थ ‘‘सोम के भगवान’’ से है। सोमनाथ मंदिर शाश्वत तीर्थस्थान के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर रोज सुबह ६ बजे से रात ९ बजे तक खुला रहता है। यहाँ रोज तीन आरतियाँ होती है, सुबह ७ बजे, दोपहर १२ बजे और शाम ७ बजे। कहा जाता है कि इसी मंदिर के पास भालका नाम की जगह है जहाँ भगवान क्रिष्ण ने धरती पर अपनी लीला समाप्त की थी।
प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है।
कहा जाता है कि चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था। परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया। प्राचीन परम्पराओं के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है।
६ कामाख्या मंदिर-
माता के ५१ शक्तिपीठों में से एक इस पीठँ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कामाख्या मंदिर को तांत्रिकों का गढ़ कहा गया है। यह असम के गुवाहाटी में स्थित है। यहां त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमा मुख्य रूप से स्थापित है। दूसरी ओर ७ अन्य रूपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में स्थापित की गई है, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए है।
पौराणिक मान्यता है कि साल में एक बार अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और माँ भगवती की गर्भगृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर ३ दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। इस मंदिर के चमत्कार और रहस्यों के बारे में किताबें भरी पड़ी हैं। हजारों ऐसे किस्से हैं जिससे इस मंदिर के चमत्कारिक और रहस्यमय होने का पता चलता है।
७ अजंता-एलोरा के मंदिर-
अंजता-एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं। ये गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। २९ गुफाएं अजंता में तथा ३४ गुफाएं एलोरा में है। इन गुफाओं को वल्र्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया गया है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। इन गुफाओं के रहस्य पर आज भी शोध किया जा रहा है। यहां ऋषि-मुनि और भुक्षि गहन तपस्या और ध्यान करते थे।
संह्नाद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन ३० गुफाओं में लगभग ५ प्रार्थना भवन और २५ बौद्ध मँ हैं। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यंत ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की हैं। इनमें २०० ईसा पूव्र से ६५० ईसा पश्चात तक के बौद्ध का चित्रण किया गया है। इन गुफाओं में हिन्दू, जैन और बौद्ध ३ धर्मों के प्रति दर्शाई गई आस्था के त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। दक्षिण की ओर १२ गुफाएं बौद्ध धर्म(महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की १७ गुफाएं हिन्दू धर्म और उत्तर की ५ गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं।
८ उज्जैन का काल भैरव मंदिर-
मध्य प्रदेश में कुछ ऐसे मंदिर हैं, जिनकी परंपराएं रोचक तो हैं ही ये श्रद्धालुओं को चौंकाती भी हैं। उज्जैन के काल भैरव मंदिर के भगवान काल भैरव और शराब! शुनकर अजीब लगता है ना, लेकिन ये सच है. उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर में प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। हमारे भारत में अनेक ऐसे मंदिर है जिनके रहस्य आज तक अनसुलझे है। इन्हीं में शामिल है महाकाल की नगरी उज्जैन का काल भैरव मंदिर। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर भगवान काल भैरव सांक्षात रूप में मदिरा पान करते है। मंदिर में जैसे ही शराब से भरे प्याले काल भैरव की मूर्ति के मुंह से लगाते है देखते ही देखते शराब के प्याले खाली हो जाते है। एक बार बहुत साल पहले एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा इस बात की गहन तहकीकात करवाई गई कि आखिर शराब जाती कहां है। उसने प्रतिमा के आसपास काफी गहराई तक खुदाई करवाई लेकिन जब नतीजा कुछ भी नहीं निकला तो वो अंग्रेज भी काल भैरव का भक्त बन गया।
९ ज्वाला देवी मंदिर-
आपको ये सुनकर हैरानी जरूर होगी लेकिन ऐसी मान्यता है कि हिमाचल के कांगड़ा स्थित माँ ज्वाला से भी बड़ी एक और ज्वालामाई थी। इसकी लपटें कहीं बड़ी और ताकतवर थी। कई किताबों में भी इसका उल्लेख किया गया है। कई लोग इसे हिमाचल के कांगड़ा स्थित माँ ज्वालामुखी की बड़ी बहन या बड़ी ज्वालामाई कहा करते थे। यहां भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते थे। लोगों की आस्था काफी गहरी थी। हिमाचल की ज्वालामुखी के बारे में कहा जाता है कि अकबर ने खुद ब खुद लगातार जलने वाली माँ की ज्वाला को बुझाने का प्रयास किया था। उसने लोहे के सात बड़े तवों से यहां आग की लपटों को बुझाने की कोशिश की थी। मगर वह नाकाम रहा था। आखिरकार उसने सोने का छत्र माँ को समर्पित किया और खुद भी माँ के चमत्कार को मानने लगा था।
बता दें कि माँ सती के ५१ शक्तिपीठों में से यह एक है। यहां माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है। इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। हजारों साल पुराने माँ ज्वालादेवी के मंदिर में जो ९ ज्वालाएं प्रज्वलित हैं, वे ९ देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं।
१० जगन्नाथ मंदिर-
पुरी के भगवान् जगन्नाथ मंदिर में आप मन्दिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा के विपरित दिशा में लहराते हुए ही देखेंगे, मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सामने ही लगा दिखेगा, सामान्य दिन के समय हवा समुंद्र से जमीन की तरफ आती है, और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पूरी में इसका उल्टा होता है, वहीं कभी भी किसी पक्षी या विमान को मंदिर के ऊपर उड़ते हुउ नहीं देख पायेगें, मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य है, मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है, चाहे कुछ हजार लोग हों या लाख, प्रसाद सभी लोगों को खिला सकते हैं। मंदिर में रसोई(प्रसाद) पकाने के लिए ७ बर्तनों को एक दूसरे पर रखा जाता है और लकड़ी पर पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकते जाती है। मंदिर के सिंहद्वार(मुख्यद्वार) में पहला कदम प्रवेश करने पर(मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि नहीं सुन सकते। आप(मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें जब आप इसे सुन सकते हैं, इसे शाम को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस मंदिर का रसोई घर दुनिया का सबसे बड़ा रसोइ घर है, प्रति दिन सांयकाल मंदिर के ऊपर लगी ध्वजा को मानव द्वारा उल्टा चढ़ कर बदला जाता है। मंदिर का क्षेत्रफल चार लाख वर्ग फिट में है, मंदिर की ऊँचाई २१४ फिट है। विशाल रसोई घर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को बनाने ४०० रसोईये एवं २०० उनके सहयोगी काम करते हैं।