Braham Kapal Tirth 8 Guna Faldayi hai GAYA se, Shiv ne Brahmhatya se paayi thi yaha per Mukti!

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ब्रह्मकपाल तीर्थ ८ गुना फलदायी है गया से, शिव ने ब्रह्महत्या से पाई थी यहाँ पर मुक्ति!

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चारों धामों में प्रमुख उत्तराखण्ड के बदरीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल के बारे में मान्यता है कि यहां पर पिण्डदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है। यही नहीं इसी तीर्थ स्थल पर भगवान शिव को भी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। पितृपक्ष शुरू होते ही इस तीर्थ में पितरों के उद्धार के लिए तीर्थयात्रियों के साथ स्थानीय श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते है। बता दें कि पिण्डदान के लिए भारतवर्ष क्या दुनिया भर से हिन्दू भले ही प्रसिद्ध गया पहुंचते हों लेकिन एक तीर्थ ऐसा भी है जहां पर पिण्डदान गया से भी ८ गुना ज्यादा फलदायी है। स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से ८ गुना ज्यादा फलदायी पितरकारक तीर्थ कहा गया है।

कैसे मिली थी शिव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति?-

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कहा जाता है कि सृष्टि उत्पति के पहले भगवान ब्रह्मा का पांच सिर हुआ करता था। जिसमें चार सिर चारों वेदों की वर्णन किया करते थे। और घमण्ड में चूर एक सिर सृष्टि उत्पति के बाद भगवान भोलनाथ और विष्णु की निन्दा करते थे। इन सभी बातों से क्रोधित होकर भगवान शिव ने ब्रह्मा का निंदा करने वाला सिर को अपने त्रिशूल से काट दिया। परतूं ब्रह्मा का कटा हुआ सिर त्रिशूल से अलग न हो कर चिपका रहा। जो की ब्रह्म-हत्या का पाप एवं त्रिशूल को ब्रह्मा के कटे हुए सिर से मुक्ति के लिए भगवान शिव पूरे ब्रह्माण्ड मे भटकने लगे।

Badrinath02png जिसके बाद पृथ्वी के आज के नाम से प्रचलित उत्तराखण्ड के बदरीनाथ धाम से ५०० मिटर की दूरी पर ब्रह्मा का कटा हुआ सिर त्रिशूल को छोड़कर एक शिला में परिवर्तित हो कर धरती पर गिर गया। जिससे शिव को इस पाप से मुक्ति मिल गयी।

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तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जिसके बाद भगवान शिव ने इस स्थान को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर अपने पितरों या अकाल मृत्य को प्राप्त अपने परिजनों का श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिल जायेगी और वो आत्मा मोक्ष का दावेदार हो जायेगा। इसके साथ-साथ उनके सभी पितरों को भी मुक्ति मिल जाएगी।

Alaknanda Nadi-121        द्वापर युग में महाभारत के भीषण युद्ध के बाद कई लोगों की मृत्यु हुई थी। उनका अच्छे से अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था। उनकी अतृत्प आत्माओं को संतुष्ट करना जरूरी था। इसलिए श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को ब्रह्मकपाल में पितरों का श्राद करने को कहा। पाण्डवों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर ब्रह्मकपाल में आकर श्राद्ध किया। जिससे अकाल मृत्यु के कारण प्रेत योनि में गए पितरों को मुक्ति मिल गई। पुराणों मे वर्णन है कि उत्तराखण्ड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में ब्रह्मकपाल बसा है।

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यहां पर अलकनंदा नदी बहती है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसकी आत्मा भटकती रहती है। ब्रह्मकपाल में उनका श्राद करने से आत्मा को शीघ्र शांति और प्रेत योनि से मुक्ति मिलती हैै।

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