अतीत व भविष्य के चक्र में न फँस के अध्यातम से जूड़ कर वर्तमान में जीना सीखो
हमारे जीवन काल में संतोष और शांति के लिए विनम्रता और त्याग की भावना जरूरी है। इसके बिना मनुष्य अपने भौतिक सुखों को पाने के लिए जीवन भर भागता रहता है। जिसका कारण यह है। मानव की इच्छा अस्थिर होती है। वह समाजिक भोग-विलास का जीवन में अधिक और अधिक चाहता है। भौतिक सुख की चाह रखने के कारण व्यक्ति हमेशा व्यस्त रहता है। योजनाएं बनाता है, उन्हें पूरा करने की जुगत बनाता है और स्वप्न देखता है। और उसका पूरा जीवन जोड़-घटाव में बीत जाता है। ऐसा व्यक्ति कभी अपने वर्तमान में नहीं जीता और अपने सामने होने वाली घटनाओं का लुत्फ नहीं उठा पाता। महत्वपूर्ण बात यह है कि बीता हुआ कल और आने वाला कल, दोनों ही भ्रम हैं। केवल वर्तमान ही सच है, क्योंकि वह सामने मौजूद है। जिन्दगी की भाग दौड़ और अंधी प्रतिस्पर्धा प्रधान समाज में आज हम अपनों को भी पूरा समय नहीं दे पा रहे है जिससे हमारे रिश्तों में खटास आई है। ध्यान व मेडिटेशन से हम न केवल खुद को शांत एवं स्वस्थ कर सकते हैं अपितु इससे रिश्तों में आयी खटास को भी मिठास में बदल सकते है। मेडिटेशन के जरिए हम चेतना की गहराईयों को पाते हैं जिससे हम न केवल खुद को बेहतर जान पाते अपितु दूसरों की अपेक्षाओं व भावनाओं को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इससे हम फिर से रिश्तों में खोई हुई मिठास पा सकते है और अपने परिवार को खुशहाल बना सकते हैं। जीना सीखो के क्रम में ध्यान योग, प्रवचन व भजनो के माध्यम से आप अपने घर में एक दिव्य वातावरण का निर्माण कर सकते है। ध्यान से हम अपने भीतर क्रोध रूपी राक्षस को भी नियंत्रण में ला सकते हैं। इसी प्रकार से जीवन में यदि सफलता पाना है तो आज का ध्यान देना होगा। अगर दिन की शुरूआत हम अपने इष्ट देवता के पूजन कर करें। एवं अपने माता-पिता के आर्शीवाद ले कर करें तो मन के साथ दिन भर किया गया आपके द्वारा कार्य में आपको सफलता एवं संतोष प्राप्त होगा।